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Friday, October 9, 2009



आसां नहीं है राहें

आसां नहीं है राहें,
बुझ सी गई है निगाहें,
थककर हार जाऊँ मैं कैसे,
फिर से प्रशस्त करनी है अपनी बाहें !

प्रशस्त होती ज़िन्दगी पे,
काली घटा है छाई,
कालचक्र की मनोदशा को,
अब तक समझ न पाई !

आर्थिक मंदी की चपेट से,
डूबता हुआ सव मंजर,
सजी संवरी ज़िन्दगी में,
चुभाता कोई खंजर !

सपनें सजाये चली थी घर से,
किसीको आँचल में सर छुपाये,
वक्त की दरिया ने ऐसा डुबोया,
ज़िन्दगी भी गई और गई पनाहें !

15 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

सत्यता को आइना दिखाती
आपकी ये रचना लाजवाब रही।
बधाई!

Unseen India Tours said...

Beautiful wording !! Description about the recession is really touchy !! Nice post..My wishes too..

मनोज कुमार said...

ज़िन्दगी के संघर्ष का सौंदर्य बोध दिखाई देता है।

शरद कोकास said...

आर्थिक मंदी की चपेट से,
डूबता हुआ सव मंजर,
सजी संवरी ज़िन्दगी में,
चुभाता कोई खंजर !

इसे कहते हैं कविता के सामाजिक सरोकार और यह हर कविता मे होना चाहिये ।

संजय भास्‍कर said...

रचना लाजवाब
बधाई!

Gyan Dutt Pandey said...

ओह, नैराश्य से बाहर आना चाहिये।

nagarjuna said...

manobhaavon ko shabdon mein bahut saralta se uthara hai...bahut badhiya...

nagarjuna said...

Nairashya bhi isi jeevan ka ang hai...par ismein dube rahna bhi theek nahi...

Creative Manch said...

प्रशस्त होती ज़िन्दगी पे,
काली घटा है छाई,
कालचक्र की मनोदशा को,
अब तक समझ न पाई !


एक अलग तरह की भावपूर्ण कविता
प्रभावित हुआ पढ़कर

आभार एवं शुभकामनायें


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संजय भास्‍कर said...

बहुत सुन्दर रचना । आभार

ढेर सारी शुभकामनायें.

SANJAY
http://sanjaybhaskar.blogspot.com

विजयप्रकाश said...

ये कविता किसी निराशा को अभिव्यक्त कर रही है.मैं तो इतना ही कहूंगा समय परिवर्तनशील है
आज का दिन ढलता है
तो अंधकार होता है
फिर से आता है सवेरा
फिर नया सूरज और
नया प्रकाश होता है

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

जीवन के यथार्थ की झलक दिखाती सुन्दर कविता।
हेमन्त कुमार

M VERMA said...

प्रशस्त होती ज़िन्दगी पे,
काली घटा है छाई,
ज़िन्दगी फिर भी प्रशस्त ही रहेगी

Unknown said...

सपनें सजाये चली थी घर से,
किसीको आँचल में सर छुपाये,
वक्त की दरिया ने ऐसा डुबोया,
ज़िन्दगी भी गई और गई पनाहें
wah bahut achi panktiyan hai ye
baliji aapko dewali mubarak ho...

संजय भास्‍कर said...

एक अलग तरह की भावपूर्ण कविता
प्रभावित हुआ पढ़कर

लाजवाब