यादें ज़िन्दगी क्या है ? एक खेल है, सुख और दुःख का मेल है, याद करती हूँ सुख भीने पलों को, भुलाने को दुःख खिलाती हूँ, ह्रदय कमल के सुप्त शत दलों को ! प्यार का आलम यहाँ हर जगह नहीं होता, प्यार बेवजह होता है, बावजह नहीं होता, यादों का मौसम हमेशा बरसता रहता है, ये बदलती ऋतुओं की तरह नहीं होता ! फूलों को कितने जतन से रखते हैं ये खार, फूल फ़िर भी बनते हैं गैरों के गले का हार, खार लेकिन देवदास सा उदास नहीं होते, अपने प्रिय की हर अदा से करते हैं प्यार ! हर सुर- ताल पे झूमने को मन चाहता है, पर 'राधा-कृष्ण' सा महारास नहीं होता, चाहते सभी हैं ज़िन्दगी में आनन्द लेना, पर ऐसा मुकद्दर सभी के पास नहीं होता ! |
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Sunday, November 1, 2009
Posted by Urmi at 4:47 AM
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18 comments:
babli ji...
you have written yet another beautiful composition...
keep it up.
बहुत बढ़िया लिखा है बबली जी!
बधाई!
जीवन !
दो चक्र
कभी सरल
कभी वक्र,
जीवन !
दो रूप
कभी छाँव
कभी धूप
जीवन!
दो रुख
कभी सुख
कभी दुःख
जीवन !
दो खेल
कभी जुदाई
कभी मेल
जीवन !
दो ढंग
कभी दोस्ती
कभी जंग
जीवन !
दो आस
कभी तम
कभी प्रकाश
जीवन !
दो सार
कभी नफरत
कभी प्यार
सुन्दर भावाभिव्यक्ति=बधाई
चाहते सभी हैं ज़िन्दगी में आनन्द लेना,
पर ऐसा मुकद्दर सभी के पास नहीं होता !
आनन्द देना सीखें -आनन्द की कोई कमी न रहेगी-हां मांगने से तो मौत भी नहीं मिलती सो आनन्द मांगे नहीं खास्कर अपनो से
श्या
यादों का मौसम हमेशा बरसता रहता है,
ये बदलती ऋतुओं की तरह नहीं होता !
...ये पंक्तियाँ बहुत भली लगी.
अब किसको कया मिला ये मुकद्दर की
बात है|शायद इसीलिए
यहाँ आकर मुकद्दर को मानना पङता है|
कविता अच्छी है.प्यार बेवजह होता है, बावजह नहीं होता, ये पंक्ति बहुत अच्छी लगी
चित्र-संयोजन भी कमाल का है. आपके चुने चित्र भी कविता के "mood" को दर्शाते हैं
जब अनहद में डूबेंगे
महारास का आनंद मिलेगा।
यादों का मौसम हमेशा बरसता रहता है,
सुन्दर भावाभिव्यक्ति
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
हर सुर- ताल पे झूमने को मन चाहता है,
पर 'राधा-कृष्ण' सा महारास नहीं होता,
चाहते सभी हैं ज़िन्दगी में आनन्द लेना,
पर ऐसा मुकद्दर सभी के पास नहीं होता ...kitna sach kaha hai babli jee aapne aapki ye rachana yatharth ke bahut karib hai..
Kuch adhoorapan nahi laga aapko jaise ye kavita aur aage badh sakti thi.... laga ki jaise main padhne ko vyakul tha aur kab padh gaya, pata hi na chala :)
aapse milkar khushi hui ..
http://pupadhyay.blogspot.com/2009/10/blog-post_23.html
बहुत ही बेहतरीन प्रस्तुति, बधाई
मैने आज ही आपकी इन पंक्तियों का अपने एक लेख ( ब्लोग चर्चा पान की दुकान पर ) मे उपयोग किया है । बहुत बहुत धन्यवाद ।
फूलों को कितने जतन से रखते हैं ये खार,
फूल फ़िर भी बनते हैं गैरों के गले का हार,
खार लेकिन देवदास सा उदास नहीं होते,
अपने प्रिय की हर अदा से करते हैं प्यार !
bahut sunder.......lagi aapki kavita.....
सर्वप्रथम ब्लॉग पर टिपण्णी के लिए धन्यवाद् ...
एक सुदर रचना है यह. एक परिपक्व कवियत्री की झलक दिखाई देती है
शब्दों का भावों के साथ अद्भुत तालमेल है
शुभकामनाएं !
भरोटा सी बधाई बबली सी बेहतरीन प्रस्तुति के लिये।
फूलों को कितने जतन से रखते हैं ये खार,
फूल फ़िर भी बनते हैं गैरों के गले का हार,
खार लेकिन देवदास सा उदास नहीं होते,
अपने प्रिय की हर अदा से करते हैं प्यार !
captivating and impressive
nice write...!!
c o n g r a t s !!!
हर सुर- ताल पे झूमने को मन चाहता है,
पर 'राधा-कृष्ण' सा महारास नहीं होता,
चाहते सभी हैं ज़िन्दगी में आनन्द लेना,
पर ऐसा मुकद्दर सभी के पास नहीं होता !
sachchi baat kahi hi aapne ,bahut sundar rachna
AAP ACHCHHA LIKHTEE HAIN.YAH RACHNA
BHEE MUN KO BHARPOOR CHOOTEE HAI.
MEREE BADHAAEE SWEEKAAR KIJIYEGA.
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