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Tuesday, November 24, 2009





अरमान

नीले नीले आसमान तले,
बैठी थी मैं अरमान लिए,
दूर कहीं जाना था मुझे,
पर बैठ गई मैं हाथ मले !

बदल गया मौसम का रंग,
रह गई रूप
मैं देख दंग,
मेरा मन पागल सा झूमा,
भँवरे ने कलियों को चूंमा !

अरमानों ने ली अंगड़ाई,
मुखड़े पर खुशियाँ है छाई,
चलते चलते रुक गए कदम,
बेदम दिल ने पाया है दम !

बह गई उसी पल एक हवा,
बन गया शीत सा गरम तवा,
क्या सोचा था और क्या पाया,
चलकर बसंत द्वारे आया !








16 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह बिटिया!
अब आपकी कलम में वाकई सुधार आ गया है।
अच्छे लेखन के लिए बधाई!

मनोज कुमार said...

कविता में सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।

संजय भास्‍कर said...

NAMASKAAR BABLI JI
LAJWAAB RACHNA

Anonymous said...

Bahut hi sundar kalpna!

M VERMA said...

बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने
बधाई

Dr.Aditya Kumar said...

जीवन के परिवर्तनशील रंगों को उकेरती सशक्त रचना ....बधाई

श्यामल सुमन said...

बैठे नील गगन के नीचे पूरे हों अरमान।
हो निखार रचना में प्रतिदिन और बढ़े सम्मान।

सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com

अनिल कान्त said...

ek sundar rachna

Unseen India Tours said...

Beautiful and touchy words !! This is an outstanding poem !! Very well written !! Congratulations.

Mithilesh dubey said...

बहुत ही गहरे भाव लगे इस रचना में , इस सुन्दर रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई ।

शरद कोकास said...

बिलकुल ठीक .. शरद रितु मे बसंत ऋतु की कविता पढकर मज़ा आ गया .. अरे वहाँ कहीं बसंत तो नही है ?

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वासंती हवा
जीवन के सारे दर्द
पल भर में ले उड़ती है
इस एक पल के लिए
अरमानों को
नील गगन के तले
जाने कब तक तपस्या करनी पड़े
सुंदर भाव जगाती प्यारी कविता
...बधाई।

Crazy Codes said...

har baar kee tarah is baar bhi achhi rachna. beech mein samay nahi mila to aa nahi saka. aap bhi vyast thi kya? kabhi fursat to aaiyega.

http://ab8oct.blogspot.com/
http://kucchbaat.blogspot.com/

Randhir Singh Suman said...

nice

वन्दना अवस्थी दुबे said...

वाह१ सचमुच बढिया है.

Nirbhay Jain said...

bahut achhi rachna !!!!