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Sunday, December 6, 2009




नवनिर्माण

जहाँ नैतिकता का पतन हो,
मानवता का दफ़न हो,
जहाँ नवयुवकों के सर पे कफ़न हो,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !


जिसके बच्चे के सीने में जलन हो,
मानव-मानव से त्रस्त हो,
क़दम-क़दम पर धोखा, भ्रष्टाचार और रिशवत हो,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !

नैतिकता का अब बोलबाला कहाँ,
आदम-आदमखोर बनकर रहता है जहाँ,
छातियाँ भी डरती है संगीनों से,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !

जनता भी कम नहीं कमीनों से,
होती है बलात्कार सामने,
पूछते फिरते हैं, कल की घटना सुना है आपने,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !










16 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

कविता तो बढ़िया है मगर
"जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गाद्अपि गरीयसी"
को भी ध्यान रखों!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

वाह बिटिया जी!
अब तो कविता बहुत अच्छी लग रही है!
सुन्दर व्यंग्य है!
बधाई हो!
सलाह मानने के लिए धन्यवाद!

शरद कोकास said...

यह बहुत अच्छी बात है कि अब आपकी कविता कास्वर बदल रहा है ..दर असल कविता का उद्देश्य ही होता है कोंचना , सामाजिक विकृतियों की ओर लोगों का ध्यान आकर्षित करना ।

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

जिसके बच्चे के सीने में जलन हो,
मानव-मानव से त्रस्त हो,
क़दम-क़दम पर धोखा, भ्रष्टाचार और रिशवत हो,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !


यह पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.........

खूबसूरत कविता.........

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

khoobsoorat abhivyakti hai ji...

ktheLeo (कुश शर्मा) said...

सुन्दर रचना!

Vinashaay sharma said...

जिसके बच्चे के सीने में जलन हो,
मानव-मानव से त्रस्त हो,
क़दम-क़दम पर धोखा, भ्रष्टाचार और रिशवत हो,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम ।

वास्तविक्ता पर व्यंग करती सुन्दर रचना ।

Tulsibhai said...

जिसके बच्चे के सीने में जलन हो,
मानव-मानव से त्रस्त हो,
क़दम-क़दम पर धोखा, भ्रष्टाचार और रिशवत हो,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !


" ye panktiyon ne dil jeet liya bahut hi sunder ."

" badhai "

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर रचना!

LAJWAAB

संजय भास्‍कर said...

कविता बहुत अच्छी लग रही है!



THANKS
BABLI JI
SUNDER KAVITA KE LIYE

Chandan Kumar Jha said...

फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !

बहुत सुन्दर व्यंग बबली जी,अगर बुराई हमारे घर के अंदर है तो उसे हमे हीं साफ़ करना होगा, कोई बाहर से आने वाला नहीं और हम किसी के भरोसे भी नहीं रह सकते है । यह भारत भूमि सही मायने मे तब स्वर्ग कहालायेगी सभी लोग सुख शांति से रह सके ।

एक बार पुनः कहना चाहुँगा बहुत सुन्दर कविता ।

Apanatva said...

apanee kamiyo ke prati jagrati jarooree hai tabhee to aaj aawaz utha sakate hai .

योगेन्द्र मौदगिल said...

wahwa.....

देवेन्द्र पाण्डेय said...

अरे वाह, आप तो व्यंग्य भी लिखती हैं!

ज्योति सिंह said...

bahut achchhi kavita likhi hai ,
जिसके बच्चे के सीने में जलन हो,
मानव-मानव से त्रस्त हो,
क़दम-क़दम पर धोखा, भ्रष्टाचार और रिशवत हो,
फिर भी करेंगे अपने वतन को सलाम हम !
sach hai

संजय भास्‍कर said...

behtreennnnnn
babli ji...