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Tuesday, February 9, 2010



तुम्हारी याद

अचानक कल नींद में,
चमक उठी तुम्हारी याद,

गुफ़ाओं के अँधेरे में,
कोहिनूर सी तुम्हारी याद !

उस दिलकश चेहरे का,
दीदार हुआ था बरसों बाद,
भीगी पलकें
ताज़ा कर गयी,
बीते रंगीन लम्हों की याद !


न्हाई में तरसे मन मेरा जब,
दिल भी हो बहुत नाशाद,
ऐसे में दिलाए मुझको सुकून,
रूह अफज़ाई से तुम्हारी याद !







21 comments:

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

तन्हाई में तरसे मन मेरा जब,
दिल भी हो बहुत नाशाद,
ऐसे में दिलाए मुझको सुकून,
रूह अफज़ाई से तुम्हारी याद !

बहुत ही डूबकर लिखा है आपने!
बसन्ती मौसम तो याद सताती ही है!

Fauziya Reyaz said...

bahut khubsurat...pyari rachna, waah

Anonymous said...

Wah-wah bahut khoob!

संजय भास्‍कर said...

बहुत बहुत बधाई....

संजय भास्‍कर said...

FIR EK SUNDER RACHNA KE LIYE...

महावीर said...

उस दिलकश चेहरे का,
दीदार हुआ था बरसों बाद,
भीगी पलकें ताज़ा कर गयी,
बीते रंगीन लम्हों की याद !
महावीर शर्मा

मनोज कुमार said...

दिलचस्प ।
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
न जाने किस गली में ज़िन्दगी का शाम हो जाये।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

ati uttam

Shubham Jain said...

bahut sundar likha aapne...kya kya karti hai aap...am amazed...aapke tino blogs behtrin...

Shubham Jain said...

sorry babli ji...maine 5 ki jagah 3 hi likha...aapke sare blogs maine dekhai hai aur sabhi bahut achche hai...badhai aapko...khana banane ka bhi itna shauk hai aapko...u r so talented...

Apanatva said...

nice poem .

पूनम श्रीवास्तव said...

Babali ji ,
main to aapko urmi nahinbabali hi bulaungi kyon ki aap to khud hi lavali lavali hain.fir itani shandar shayariyan aur kavi tayen .ji karata main aap par hi kyona ek kavta likh dalun ise aatishyokti na samajhiyega . yah vichar mere man me abhi abhi aaya hai . poonam

शरद कोकास said...

रूह अफज़ाई सी याद अच्छा बिम्ब है ।

कविता रावत said...

Sundar komal bhav achhe lage.........

Dr.Aditya Kumar said...

nice expression.

Parul kanani said...

so nice !

संजय भास्‍कर said...

महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !

अमिताभ श्रीवास्तव said...

चमक उठी तुम्हारी याद,
chamak uthana..vakai ynha inhi shbdo ki jaroorat thi kyoki is pankti ne aapki rachna ki saarthakta aur yaad ke prati jo bhaav the use saakar kar diya he/ hota bhi esaa hi he..kintu aksar jo hota he use usi tarah shbdo me utaarna aasaan nahi hota.
गुफ़ाओं के अँधेरे में,
कोहिनूर सी तुम्हारी याद !
mujhe in panktiyo ne bhi kaafi prabhavit kiya..

रचना दीक्षित said...

देरी के लिए माफ़ी. बहुत सुन्दर अभिवक्ति. ये छलावे तो जन्मों से चले आ रहे हैं. पर मुझे अब उन दिलकश यादों में जाने से ना रोको बाय .......................................

Neeraj Kumar said...

अचानक कल नींद में,
चमक उठी तुम्हारी याद,
गुफ़ाओं के अँधेरे में,
कोहिनूर सी तुम्हारी याद !

बेहतरीन भावपूर्ण पंक्तिया...ताजमहल सी पाक और शफ्फाक...

पंकज मिश्रा said...

शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार। शानदार।
बस और कुछ नहीं।