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Tuesday, March 23, 2010




एक बूँद

कभी छलके झरनों से,
कभी बरसे बादलों से,

कभी उछले लहरों से,
वो है एक बूँद !


कभी दिखे पत्तों पे,
कभी टपके दर्द से,
कभी बहे ख़ुशी से,
वो है एक बूँद !


कभी छलके मुस्कुराने से,
कभी बहे याद आने से,

कभी टपके बिछड़ने से,
वो है एक बूँद !


20 comments:

रश्मि प्रभा... said...

waah, bahut hi badhiyaa

संजय भास्‍कर said...

कभी छलके मुस्कुराने से,
कभी बहे याद आने से,
कभी टपके बिछड़ने से,
वो है एक बूँद !


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है

डा0 हेमंत कुमार ♠ Dr Hemant Kumar said...

वाह--------- बूंदों का बहुत बारीक अध्ययन और बेहत्रीन प्रस्तुतीकरण्।

Randhir Singh Suman said...

nice

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बूँद के अनेक रूप दिखा गयी कविता...बहुत खूब..

SACCHAI said...

" bahut hi badhiya " bund " ...kya baat hai ..

कभी छलके मुस्कुराने से,
कभी बहे याद आने से,
कभी टपके बिछड़ने से,
वो है एक बूँद !

aapki lekhani ko salam sister

----- eksacchai { AAWAZ }

http://eksacchai.blogspot.com

शरद कोकास said...

अब कवितायें थोड-ई थोड़ी बड़ी होती जा रही है बधाई ।

arvind said...

कभी छलके झरनों से,
कभी बरसे बादलों से,
कभी उछले लहरों से,
वो है एक बूँद !...बहुत सुंदर

राजीव थेपड़ा ( भूतनाथ ) said...

......हेय.......मिथुन दा के शब्दों में क्या बात......क्या बात.....क्या बात.......उर्मी आप अब सचमुच मंझ चली हो.....!!!

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

आपने बून्द के अस्तित्व को बहुत ही बढ़िया ढंग से परोसा है!
बधाई!

Yatish Jain said...

कविता के सागर में आपकी यह बूंद बहुत ही सुंदर है

dipayan said...

एक बूंद, कई रूप । बहुत खूब । सुन्दर रचना ।

रानीविशाल said...

Bahut khubsurat.

विजयप्रकाश said...

वाह...आपकी बूंद ने मन को आनंद में भिगो दिया, चित्र भी सजीव लगता है मानों बूंद अभी टपक पड़ेगी.

ओम पुरोहित'कागद' said...

बूंद का फलसफ़ा आपके अंदाज मेँ जाना।विराट का सूक्षम रूप ही तो है बूंद।विराट की लीला अपरम्पार है तो बूंद की लीला का कहां पार?बूंद बूंद से सागर भर जाता है मगर अंतस्थ सागर कभी बूंद बूंद से रीतता नहीँ।खैर!आपके शानदार पर जानदार मुक्तकत पसंद आए। बधाई!
omkagad.blogspot.com

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

sunder rachna

ओम पुरोहित'कागद' said...

आप मेरे ब्लाग पर आए ,रचनाएं पढ़ी-सुनी और आपको अच्छी लगी इसके लिए साधुवाद! दूर देश में बैठ कर भी आप हिन्दी की अलख जगाए हैँ इसके लिए आपको सलाम!मेरे ब्लाग पर अपनी फोटो टांगने के लिए आभार। आप राजस्थानी भाषा भी समझती होँगी?

रावेंद्रकुमार रवि said...

पढ़ने में ही नहीं,
देखने में भी
ख़ूबसूरत लग रही है -
आपकी यह सरस बूँद!

vijay kumar sappatti said...

babli ji , deri se aane ke liye maafi chahunga .... aaj aapki bahut si kavitaye padhli hai .. ye mujhe bahut acchi lagi ... waah ji waah .. meri badhai sweekar kariye ...

aabhar aapka

vijay

p.s. - main jaldi ek kavita aapko bhejunga , use aapne bengali me translate karke mujhe dena hai .. main ek naya prayog kar raha hoon ...ek hi kavita ko kayio bhashao me likhna chahta hoon ji ..