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Friday, April 2, 2010




सुमन

नन्ही सी कली खिल गयी जब,
रंग के अभिनव जगत से मिल गयी तब,
गुदगुदाती है सुगन्धें मन मेरा,

मुस्कुराती देखकर तुमको धरा !


रात अपनी पंखुरियों को समेटती,
सुबह होते ही अपनी छटा बिखेरती,
देखकर सौंदर्य कलियाँ खिल उठी,
ह्रदय में मुस्कान मानो पल उठी !


छा गए जीवन में नूतन रंग हैं,
मन-सुमन दोनों हंसें इक संग हैं,
सीख देते हैं अनोखी यह सुमन
,
महकता है इन्हीं से मन का चमन !

22 comments:

मनोज कुमार said...

सच्ची भावना के साथ अच्छी कविता। थोड़ा अशुद्धियों को ध्यान दें।

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत ही खूबसूरत और शिक्षाप्रद कविता है!
बधाई!

Randhir Singh Suman said...

सीख देते हैं अनोखी यह सुमन,
इन्हीं से गुलज़ार है सबका चमन.nice

मुकेश कुमार सिन्हा said...

khushiyan bikherti aapki kavita......hamara man bhi suvasit ho gaya........:) isse padh kar ..:)

Parul kanani said...

sundar rachna..badhai!

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

Bahut sundar Kavita hai....Kuch wyakaran me galatiyan hain par...wo to sudhari ja sakti hain...aapki kalpna manoram hai...

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही खूबसूरत और शिक्षाप्रद कविता है!

Saumya said...

very nice...

Dr.Aditya Kumar said...

रात अपनी पंखुरियों को समेटती,
सुबह होते ही अपनी छटा बिखेरती,
देखकर सौंदर्य कलियाँ खिल उठी,
ह्रदय में मुस्कान मानो पल उठी !
excellent expression.

राज भाटिय़ा said...

अति सुंदर ओर शिक्षाप्रद कविता
धन्यवाद

भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

अच्छी कविता..
आपका ब्लाग गुलदस्ता-ए-शायरी खुलने के साथ ही ब्राउजर बन्द हो जाता है. सफारी, एक्स्प्लोरर और क्रोम भी..कोई गैजेट तो गड़बड़ नहीं कर रही.

Anonymous said...

waah kya baat hai....
aapki kavitaon k saaye me shayad main v kuch seekh jaun.......

SACCHAI said...

"EK ACCHI KAVITA "

----- eksacchai { aawaz }

http://eksacchai.blogspot.com

अरुणेश मिश्र said...

प्रशंसनीय ।

arvind said...

रात अपनी पंखुरियों को समेटती,
सुबह होते ही अपनी छटा बिखेरती,
देखकर सौंदर्य कलियाँ खिल उठी,
ह्रदय में मुस्कान मानो पल उठी .
......बहुत ही खूबसूरत कविता.

alka mishra said...

उर्मी चक्रवर्ती जी ,बहुत मासूम सी कविता है और उतना ही निर्मल ये फोटो
आपके ब्लॉग पर आकर अच्छा लगा
आपका तहे दिल से शुक्रिया अदा करना चाहूंगी की आपने साहित्य हिन्दुस्तानी को फालो करके हिन्दी साहित्य में अपनी आस्था प्रकट की ,
मुझे अच्छा लगा

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hisundar rachna,padh kar mantra
mugdh ho gai kuchh palon ke liye.
सीख देते हैं अनोखी यह सुमन,
इन्हीं से गुलज़ार है सबका चमन .

विजयप्रकाश said...

बहूत खूब...आपने तो कली के फूल बनने और सुगंध बांटने के अहसास को कविता के माध्यम से हम सभी से बांटा है

पूनम श्रीवास्तव said...

..


ek sandesh deti hui aapki yah ati sundar kavita bahut huachhi lagi.
सीख देते हैं अनोखी यह सुमन,
इन्हीं से गुलज़ार है सबका चमन

सम्वेदना के स्वर said...

ज़िंदगी फूलों की नहीं, फूलों कि तरह महँकी रहे...

Anonymous said...

mujhe achhi lagi to main dobaara padhne chala aaya....
http://i555.blogspot.com/ mein is baar तुम मुझे मिलीं....
jaroor dekhein...
tippani ka intzaar rahega.

kunwarji's said...

bahut badhiya lagi ji aapki ye kavita...
badhai swikaar kare..


kunwar ji,