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Saturday, September 18, 2010


वादियाँ

ऊँचे ऊँचे पहाड़ों से बहता पानी राग अलापता है,
सावन का सरगम मन को उत्साह से भरता है,
कभी मन करता है रुक जाऊँ और इनमें खो जाऊँ,
कभी दिल करता है दौड़ पडूँ पहाड़ की उंचाई पर !

दिल करता है बड़े छोटे पेड़ों से बात करती ही रहूँ,
इन ख़ूबसूरत वादियों का भरपूर आनंद लेती रहूँ,
घने काले बादल फैले हुए हैं मानो चादर की तरह,
जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ !

कभी मन चाहे भीग जाऊँ पूरी तरह बारिश में,
कभी लगे इन खुली वादियों में झूमती रहूँ,
सच में ये सावन
आह्लादित करता है,
गाँव की खुशबू एक अजीब सुकून देती है !

गोबर की भीनी सी महक हवा में जादू घोलती है,
मानो किसी मेहबूब की यादें लेकर चली रही है,
यूँ तो कभी मिलता नहीं आसमाँ अपनी ज़मीं से,
क्यूँकि जीवन खिलता है इस कमी से !

31 comments:

P.N. Subramanian said...

"कभी दिल करता है दौड़ पडूँ पहाड़ की उंचाई पर"
सुन्दर अभिव्यक्ति!

मनोज कुमार said...

@ जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ !
इसे पढकर गाने लगा मन
मन तो बच्चा है जी!
थोड़ा कच्चा है
पर सच्चा है जी!!
बहुत प्राकृतिक अभिव्यक्ति, प्रकृति की तरह।

वीना श्रीवास्तव said...

यूँ तो कभी मिलता नहीं आसमाँ अपनी ज़मीं से,
क्यूँकि जीवन खिलता है इस कमी से !

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

दिल करता है बड़े छोटे पेड़ों से बात करती ही रहूँ,
इन ख़ूबसूरत वादियों का भरपूर आनंद लेती रहूँ,
घने काले बादल फैले हुए हैं मानो चादर की तरह,
जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ !




बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ.....

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

एक साथ गगन, गाँव और गोबर के साथ प्रक्र्ति का मजा आ गया..

M VERMA said...

कभी मन चाहे भीग जाऊँ पूरी तरह बारिश में,
कभी लगे इन खुली वादियों में झूमती रहूँ,
अरमानों की उड़ान .. बहुत खूब

Shaivalika Joshi said...

Bahut Manmohak

दीपक बाबा said...

गोबर की भीनी सी महक हवा में जादू घोलती है,

दिक्कत तो तब होती है - मेरा पांचवी क्लास का बेटा ........ गाँव नहीं जाना चाहता - कहता है - पापा पोटी कि स्मेल आती है.



क्या कहेंगे GEN-X को

Anamikaghatak said...

khubsurati se shabdo ko ukeraa hai aapne..........prayas achcha hai.badhai

Dr.Aditya Kumar said...

वादियों का पूरा चित्र ही उतार दिया आपने शब्दों के माध्यम से .

Asha Joglekar said...

प्रकृति का प्रेम आपकी इस कविता में छलका पड रहा है । सुंदर अभिव्यक्ति ।

Udan Tashtari said...

ये बात हुई...आनन्द आया पढ़कर.

वाणी गीत said...

यूँ तो कभी मिलता नहीं आसमाँ अपनी ज़मीं से,
क्यूँकि जीवन खिलता है इस कमी से !

अच्छी कविता ..!

Arvind Mishra said...

प्रक्रति से रूमानियत भरा रिश्ता

विजयप्रकाश said...

बहुत सुंदर...अपनी अनूभूतियों को आपने सुंदर और सरल शब्दों में बांधा हैं.

संजय भास्‍कर said...

प्रकृति का प्रेम आपकी इस कविता में छलका पड रहा है । सुंदर अभिव्यक्ति ।

संजय भास्‍कर said...

बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

Swarajya karun said...

अपनी ज़मीन और अपनी जड़ों से जुड़ी एक सुंदर कविता. दूर देश में भी गाँव की धड़कनों का अहसास
कराती कविता. बहुत-बहुत बधाई .

Anonymous said...

bahut hi umdaah rachna....
badhai....
----------------------------------
मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ...

संजय @ मो सम कौन... said...

प्रकॄति से इतना प्यार एक सरल और कवि हदय ही कर सकता है। बहुत खूब अभिव्यक्त किया है आपने।
खूबसूरत पंक्तियां।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

प्रकृति से स्वयं को जोड़ना ... बहुत अच्छी रचना ...

अजय कुमार झा said...

सरल शबदों में आपके भावों को उकेरती रचना ...

जयकृष्ण राय तुषार said...

bahut sundar manbhavan prastuti badhai

Amrit said...

As usual very nice. Reminded me of several songs from old movies describing natural beauty.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दिल करता है बड़े छोटे पेड़ों से बात करती ही रहूँ,
इन ख़ूबसूरत वादियों का भरपूर आनंद लेती रहूँ,
घने काले बादल फैले हुए हैं मानो चादर की तरह,
जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ !
--

बहुत ही बढ़िया रचना है!
पढ़कर मन प्रसन्न हो गया!

माधव( Madhav) said...

सुन्दर अभिव्यक्ति

वीरेंद्र सिंह said...

सुंदर कविता ...
हर पंक्ति उम्दा है .
आभार

Sunil Kumar said...

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...

ZEAL said...

Nature is defined beautifully....Best wishes.

budh.aaah said...

Hi Urmi
You are welcome to read a ghazal I've written today on'we even cry the same way' my regular blog.