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Monday, May 30, 2011


मंज़िल

निकल पड़े थे राह पर अकेले,
चला किए हम शाम सवेरे !

मंज़िल पर पहुँचने से पहले,
राह में ही हम अटक गए !

मंज़िल दूर तक नज़र नहीं आए,
लगा जैसे हम रास्ता भटक गए !

बेचैन होकर हमारी नज़र,
ढूंढ़ रही थी इधर उधर !

अचानक..हवा का झोंका आया,
मानो किसीने प्यार से सहलाया !

आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !

उन्होंने रखा मेरे सर पर हाथ,
ले गयी दादीमा मेरे सारे दुःख अपने साथ !

दूर हो गयी सारी परेशानी मेरी,
मंज़िल सामने नज़र आयी मेरी !


26 comments:

Kunwar Kusumesh said...

दादी माँ का आशीर्वाद मिल गया तो मंजिल तो मिलेगी ही.

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !

बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ....

Rakesh Kumar said...

ओह! दादी माँ से आपका इतना जुडाव.
वास्तव में तो दादी माँ के रूप में ईश्वरीय
प्रेरणा ही हमें प्रेरित करती रहती है मंजिल
की तरफ सैदेव अग्रसर होने के लिए.

सुन्दर प्रेरणादायक अभिव्यक्ति के लिए आभार.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बस यूँ ही आशीर्वाद मिलता रहे ..मंजिल खुद ब खुद मिल जायेगी

Jyoti Mishra said...

beautifully crafted !!

मंज़िल पर पहुँचने से पहले,
राह में ही हम अटक गए !

the reality of human life.

SACCHAI said...

dadi maa prati aapka pyar dekhker aanand aa gaya ..bahut hi pyari rachana

कौवा बिरयानी सरकार ..जन लोकपाल बिल लोचे में पड़ा
http://eksacchai.blogspot.com/2011/05/blog-post_31.htm

संजय भास्‍कर said...

बस यूँ ही आशीर्वाद मिलता रहे ..मंजिल खुद ब खुद मिल जायेगी
.....हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्‍यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर प्रेरणादायक अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

सुन्दर भावनात्मक कविता !

Shikha Kaushik said...

dadi ji ko samarpit yah kavita hamare sanskaron ko pradarshit karti hai .bahut achchhi bhavabhivyakti .aabhar

G.N.SHAW said...

दादी माँ बहुत प्यारी होती है ! काश मै भी अपनी दादी माँ को देखा होता ! भावुक कविता

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

सुन्दर रचना....
बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद हमारी परेशानियों को सुलझाता रहता है , जिंदगी में सदैव अनजानी राहों पर उनका मार्गदर्शन जरूर मिलता है |

पी.एस .भाकुनी said...

बेचैन होकर हमारी नज़र,
ढूंढ़ रही थी इधर उधर !..........
बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ.आभार.

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

kya khoobsurat baat kahee hai!!!
sundar kavita....

Vivek Jain said...

सुन्दर प्रेरणादायक अभिव्यक्ति
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

मुकेश कुमार सिन्हा said...

wah re aashish....dadi ke aashish ka chamatkar...:)

Amrit said...

Wow. Excellent one once again.

Anonymous said...

nice one

Rachana said...

dadima pr likhi pyari kavita
rachana

मीनाक्षी said...

आपके सभी ब्लॉगज़ देख आए लेकिन सोचा इस मंज़िल पर रुकना चाहिए जहाँ बड़ों का आशीर्वाद मिल सकता है... शुभकामनाएँ

Rahul Singh said...

बना रहे बड़ों का साया.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !

उन्होंने रखा मेरे सर पर हाथ,
ले गयी दादीमा मेरे सारे दुःख अपने साथ !

दूर हो गयी सारी परेशानी मेरी,
मंज़िल सामने नज़र आयी मेरी !



मन को छूने वाली बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ....

Dr Varsha Singh said...

कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......

गिरधारी खंकरियाल said...

बड़ों का आशीर्वाद ही साथ रहना चाहिए

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

मंज़िल दूर तक नज़र नहीं आए,
लगा जैसे हम रास्ता भटक गए !

बहुत सुंदर रचना है

ज्योति सिंह said...

आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !
sundar ahsaas liye rachna