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Tuesday, June 21, 2011



कर्त्तव्य

कितने नन्हे बच्चे हैं जो ख़ाली पेट सोते,
जहाँ तक हो सके हमें उनका ख्याल है रखना,
ग़रीबों की मदद करने में ही मिलता है पुण्य ,
ऐसे नेक कामों से हमें पीछे नहीं रहना !

जिन्हें एक वक़्त खाना नसीब होता,
उन्हें देखकर मन उदास सा हो जाता,
जो कुछ मिले उसीसे हमेशा संतुष्ट रहना,
इश्वर की दी हुई चीज़ को कभी ठुकराना !

कुछ लोग रखते हैं
पॉकेट में कलम-कागज़,
कभी भूले से बम या फिर पिस्तोल नहीं रखते,
सदा अपने उसूलों पर ही चलने की कोशिश करते,
अपने माता-पिता की बातों पर गौर फ़रमाते !

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात कहें जाए।

39 comments:

रविकर said...

सदा अपने उसूलों पर ही चलने की करें कोशिश,
अपने माता-पिता की बातों पर गौर फरमाते !

जो करोगे ऐसा, जियोगे दुनिया में गर्व से सर उठाके ||
नहीं तो मिलोगे भैया, हाथ मलते और पछताते ||

Kailash Sharma said...

बहुत संवेदनशील और सार्थक प्रस्तुति..काश सभी इस बारे में सोचें..

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत सही लिखा है आपने.
----------------------------------
कल 22/06/2011को आपकी एक पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की गयी है-
आपके विचारों का स्वागत है .
धन्यवाद
नयी-पुरानी हलचल

Dr Varsha Singh said...

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात न कहें जाए।

नन्हे बच्चों के प्रति बहुत ही सुन्दर और सारगर्भित पोस्ट....बधाई स्वीकारें !

गिरधारी खंकरियाल said...

संस्कार जो बड़ों से प्राप्त होते हैं उनका समादर ही उनके प्रति श्रद्धा है .

arvind said...

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात न कहें जाए।
......संवेदनशील और सार्थक

नश्तरे एहसास ......... said...

kitni hi badi seekh.....bahut sunder prastuti!!

डॉ. मोनिका शर्मा said...

कितने नन्हे बच्चे हैं जो ख़ाली पेट सोते,
जहाँ तक हो सके हमें उनका ख्याल है रखना,
ग़रीबों की मदद करने में ही मिलता है पुण्य ,
ऐसे नेक कामों से हमें पीछे नहीं रहना !

सुंदर अभिव्यक्ति.... संवेदनशील भाव

वीना श्रीवास्तव said...

संतोष सबसे बड़ी बात है जो होनी ही चाहिए....
संतोष है तो सब कुछ है...

अजय कुमार said...

सरल और सही बात

Anupama Tripathi said...

wah ...bahut sunder ...!!

Bharat Bhushan said...

'कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात न कहें जाए'

आपकी भावनाएँ समाज के लिए हितकारी हैं और मानवीयता से भरी हैं. शुभकामनाएँ.

prerna argal said...

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात न कहें जाए।
bahut hi saarthak,gyaanverdhak.anoothi rachanaa.badhaai.




please visit my blog.thanks.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

बहुत ही संवेदनापूर्ण , भावपूर्ण,मानवीय मूल्यों से युक्त और प्रेरक रचना
हम सब को इसी तरह सोचने और व्यवहार करने की जरूरत है

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सार्थक सन्देश देती संवेदनशील रचना

Unknown said...

babli ji aaj to aapne man jeet liya, itne umda saleeke se aapne is vishya ko saamne rakhte hue kavita kahi hai ki man bhar aaya...

jiyo jiyo...jai hind !

सहज साहित्य said...

संसार को समझ और मानवीयता का पाठ पढ़ाने वाली सुन्दर कविता के लिए उर्मि जी आपको बधाई

G.N.SHAW said...

बहुत सुन्दर !

Kunwar Kusumesh said...

प्रेरक कविता बहुत बढ़िया है.

महेन्‍द्र वर्मा said...

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए

ऐसे बच्चों को भी अपनी पहचान बनाने के लिए अवसर दिए जाने की आवश्यकता है।
कविता मन पर प्रभाव छोड़ती है।

Rakesh Kumar said...

सुन्दर,सार्थक प्रेरणापूर्ण व शिक्षाप्रद विचार.
आपका शिष्य बनने का दिल करता है बबली जी.

Amrit said...

Very nice

Atul Shrivastava said...

सार्थक बात।
चिंतन करने योग्‍य विषय।
शब्‍द संयोजन कहीं कहीं गडबडाया, बाकी भावों में संवेदना की कोई कमी नहीं
बेहतरीन

शुभकामनाएं आपको

Rachana said...

कुछ लोग रखते हैं पॉकेट में कलम-कागज़,
कभी भूले से बम या फिर पिस्तोल नहीं रखते,
सदा अपने उसूलों पर ही चलने की कोशिश करते,
अपने माता-पिता की बातों पर गौर फ़रमाते
sunder bat kash sabhi isko samajh ke in baton pr dhyan de
sunder
rachana

Dr (Miss) Sharad Singh said...

संवेदना से भरी मार्मिक रचना।
बेहतरीन प्रस्तुति के लिए आपको हार्दिक धन्यवाद!

रचना दीक्षित said...

सुन्दर और प्यारी अभिव्यक्ति

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात न कहें जाए।
बहुत ही अच्छी प्रेरणा देती हुई रचना.लोगों की संवेदना न जाने कैसे और कहाँ खोती जा रही है.आज के युग में इन विचारों की जरुरत है.

M VERMA said...

सुन्दर सीख देती रचना

Bharat Bhushan said...

जीवन में अच्छे असूल अपनाना आवश्यक है. बढ़िया पोस्ट.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

लाजवाब.. शिक्षाप्रद!!

shyam gupta said...

अच्छी भावनाएं ...

somali said...

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात न कहें जाए।
bahut sahi kaha hai aapne

SM said...

गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
nice poem

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

कहीं ऐसा न हो पहचान भी अपनी गवाँ बैठे,
कभी भी वक़्त के किसी धारे में न बह जाए,
गुरुजन की दी हुई सीख को न कभी भूलें,
किसी को चोट पहुँचे, कोई ऐसी बात न कहें जाए।


waaaah!!!!!!

aisi waani boliye mann ka aapa khoye....

khoobsoorat rachna...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut hee sateek aur suljhee hui rachna urmi ji...

prerna argal said...

कुछ लोग रखते हैं पॉकेट में कलम-कागज़,
कभी भूले से बम या फिर पिस्तोल नहीं रखते,
सदा अपने उसूलों पर ही चलने की कोशिश करते,
अपने माता-पिता की बातों पर गौर फ़रमाते !
bahut khoob.bahut achcha likha aapne badhaai.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अच्छी भावनाओं को लेकर रची गई बहुत बढ़िया रचना!

vijai Rajbali Mathur said...

काफी प्रेरणादायक एवं अनुकरणीय कविता है.

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

बबली जी धन्यवाद बहुत सुन्दर सन्देश --भगवन हम सब के कान पकड़ कर ऐसे ही बनाये रखें
शुक्ल भ्रमर ५

कुछ लोग रखते हैं पॉकेट में कलम-कागज़,
कभी भूले से बम या फिर पिस्तोल नहीं रखते,
सदा अपने उसूलों पर ही चलने की कोशिश करते,
अपने माता-पिता की बातों पर गौर फ़रमाते !