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Sunday, August 28, 2011

दरिया

सागर से बिछड़ा दरिया हूँ मैं,
क़ाश कहीं पर फिर मिल जाऊँ,
बादल ने चुराया जिसका पानी,
उस धरा को आज भिगो जाऊँ !

कैसे रहूँ बिन सागर के मैं,
अधूरा सा रहने लगा हूँ उसके बिन,
सागर से संगम कब होगा?
ये आस लिए मैं बिखरी धरा पर !

लाया था कुछ, ले जाऊँ,
समंदर में फिर समा जाऊँ,
इस मोह से बंधन टूटा पर,
इस माया से कैसे मुक्ति पाऊँ?

कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !

35 comments:

Anupama Tripathi said...

बहुत सुंदर भाव मन के ...
बधाई....

Ankit pandey said...

मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !

bilkul thik kaha aapne doosron ko khushi denge to khud bhi khush rahenge.

Anamikaghatak said...

ati uttam

vidhya said...

सुन्दर भाव

Dev said...

लाजवाब ...

SACCHAI said...

कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !

in lines ne dil jeet liye waah !

रविकर said...

बहुत-बहुत बधाई |

सुन्दर प्रस्तुति ||

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

आज 29 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर

Amrita Tanmay said...

जख्म के बदले खुशियाँ ..बहुत ही सुन्दर रचना..आपको शुभकामना.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !


श्रेष्ठ आकांक्षा...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुंदर भाव.

मदन शर्मा said...

सुन्दर प्रस्तुति ||

संध्या शर्मा said...

मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !
बहुत सुंदर भाव...

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति।

Amrit said...

Babli,

I have run out of adjectives for your poems. They are so beautiful and well written. And of course with deep meaning for example last sentence of this poem is so profound.

Again why don't you publish a book. You are not an ordinary blogger.

Arvind kumar said...

कमाल का लिखा है...

ऋता शेखर 'मधु' said...

लाजवाब प्रस्तुति...सुन्दर भाव के साथ..बधाई

शूरवीर रावत said...

अपने आराध्य में समाहित होने की उत्कंठा को दर्शाती एक भावमय प्रस्तुति. सुन्दर. परम सुन्दर. आभार.

Rakesh Kumar said...

वाह! बबली जी वाह!
विचित्र दरिया है आपका.
जख्म खाकर भी
हमें तो हमेशा ही आप खुशियाँ ही देती जातीं हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

संजय भास्‍कर said...

आपकी कवितायेँ अवं संग्रह पढ़ कर अच्छा लगा ऐसे रचनाओं के लिए धन्यवाद
कृपया मुझे भी मार्गदर्शन देवे

Rajesh Kumari said...

bahut sukomal,sunder man ke bhaav ukerti prastuti.

Unknown said...

बहुत ही सुन्‍दर शब्‍द रचना

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं

Maheshwari kaneri said...

बहुत सुंदर मनो भाव..
बधाई....

G.N.SHAW said...

कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ ! उर्मी जी बहुत सुन्दर - प्रेरणा

ashok andrey said...

priya babli jee aapki kavita padi,sundar bhavbhivaykti ke liye,badhai.

Sawai Singh Rajpurohit said...

बबली जी
कैसे रहूँ बिन सागर के मैं,
अधूरा सा रहने लगा हूँ उसके बिन,
सागर से संगम कब होगा?
ये आस लिए मैं बिखरी धरा पर !

सुन्दर भाव

ईद मुबारक

Akshitaa (Pakhi) said...

Bahut sundar...

Ankur Jain said...

sundar, bhavpurn kavita...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aap khushiyaan hee detee hain!

Dr Varsha Singh said...

सागर से बिछड़ा दरिया हूँ मैं,
क़ाश कहीं पर फिर मिल जाऊँ,
बादल ने चुराया जिसका पानी,
उस धरा को आज भिगो जाऊँ !


बेहद शानदार लाजवाब प्रस्तुति

Anonymous said...

sundar rachna

संध्या शर्मा said...

कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !
बहुत सुंदर भाव...

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 03 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!