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Friday, September 2, 2011

ख़्वाबों में मत तराश

उदास रात की कोई सुबह हसीन नहीं होती,
ख़ुशी के एक लम्हें के लिए तरस जाती !

आसमाँ है मेरा, ज़मीन ही है मेरी,
जिसे माना अपना, बेगाना-सा लगे वहीँ !

मैं ख़ुशबू बनकर हवा में नहीं बसती,
मैं किरणों की तरह महीन भी नहीं !

मुझे तू ख़्वाबों में मत तराश अभी,
उड़ती तितली की तरह मैं रंगीन नहीं !

छुप जाते हैं बादल में कभी चाँद तारे,
गुमसुम रहकर देखती हूँ वो सब नज़ारे !

भुला दिया उसने प्यार करके मुझे,
मिलने पर वो पहचाने, मुझे ये यकीन नहीं !

टूटे हुए कांच की तरह बिखर गई मैं तो,
मिले अब पनाह तक, ये सोचकर रोयी !

बुझ गया ये "दीप", सुबह के सितारे के लिए,
खुश हूँ मिटकर भी, मैं ज़रा गमगीन नहीं !

44 comments:

डॉ. मोनिका शर्मा said...

मैं ख़ुशबू बनकर हवा में नहीं बसती,
मैं किरणों की तरह महीन भी नहीं !

Waah ...Sunder Abhivykti...

Anupama Tripathi said...

dard vyakt karti hui marmsparshi rachna ..

shyam gupta said...

टूटे हुए कांच की तरह बिखर गई मैं तो,
मिले न अब पनाह तक, ये सोचकर रोयी !

बुझ गया ये "दीप", सुबह के सितारे के लिए,
खुश हूँ मिटकर भी, मैं ज़रा गमगीन नहीं !

---विरोधाभाषी भाव-अभिव्यक्ति है...

Yashwant R. B. Mathur said...

बहुत ही बढ़िया।

सादर

Rajesh Kumari said...

bahut sunder bhaav abhivyakti.very nice.

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

खूबसूरत अभिव्यक्ति

Unknown said...

खुबसूरत रचना,सादर .

vandana gupta said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति।

सदा said...

मैं ख़ुशबू बनकर हवा में नहीं बसती,
मैं किरणों की तरह महीन भी नहीं !
वाह ...बहुत खूब कहा है ।

ऋता शेखर 'मधु' said...

सभी दोहे दर्द की दास्ताँ हैं...
व्यथा की अच्छी अभिव्यक्ति..बधाई

prerna argal said...

टूटे हुए कांच की तरह बिखर गई मैं तो,
मिले न अब पनाह तक, ये सोचकर रोयी !

बुझ गया ये "दीप", सुबह के सितारे के लिए,
खुश हूँ मिटकर भी, मैं ज़रा गमगीन नहीं !

BAHUT SUNDER SHER .POORI PRASTUTI HI BEMISAAL HAI .BAHUT BAHUT BADHAAI AAPKO.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

बहुत ही सुन्दर रचना.. कोमल भावों से सजी!!

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति। धन्यवाद|

शूरवीर रावत said...

प्रेम है तो विरह भी है और इसे स्वीकार करना ही होगा बबली जी.......
विरह की टीस को अभिव्यक्त करती एक सुन्दर और सुहानी कविता.
बधाई व आभार !!

जयकृष्ण राय तुषार said...

अच्छी भावाभिव्यक्ति बधाई

Neelkamal Vaishnaw said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति पढ़ कर अच्छा लगा......

आप भी आये यहाँ कभी कभी
MITRA-MADHUR
MADHUR VAANI
BINDAAS_BAATEN

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

ye pyar hi hai jo mitne per bhi gamgeen nahi hone deta...pyar ki kisi bishes sthiti me aisa ho jaata hai dil to kuch chahata hai..per dimag har sambhawna ko kharij kar deta hai..sundar prastutu...mere blog pe aap bahut dino se nahi aayin hain...meri bahut sari rachnayein aapka intzaar kar rahi hain

Maheshwari kaneri said...

मैं ख़ुशबू बनकर हवा में नहीं बसती,
मैं किरणों की तरह महीन भी नहीं ! ...... खूबसूरत अभिव्यक्ति.

Asha Joglekar said...

सुंदर दुख भरी कविता । पर आंत में अपने आप को सम्हलने का प्रयास भी है ।

शिवम् मिश्रा said...

बहुत खूब ...

PK Sharma said...

ati sundar

SACCHAI said...

adbhut ..sahi sabdo ka chayn ..maja aaya

shephali said...

बबली जी
चलते फिरते आपके ब्लॉग पे आना हुआ
पढ़ कर बहुत अछा लगा
मुझे तू ख़्वाबों में मत तराश अभी,
उड़ती तितली की तरह मैं रंगीन नहीं !
बहुत सुन्दर

Amrita Tanmay said...

सुन्दर भाव.. अच्छी रचना.सादर

G.N.SHAW said...

त्याग की भावना सभी में नहीं होती ! मोम जल कर भी रोशनी देता है - किसी और के लिए ! बहुत सुन्दर दर्पण !

संजय भास्‍कर said...

वाह बेहतरीन !!!!

भावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...

वीरेंद्र सिंह said...

Really very impressive! Congrats!

prerna argal said...

बुझ गया ये "दीप", सुबह के सितारे के लिए,
खुश हूँ मिटकर भी, मैं ज़रा गमगीन नहीं !
saare sher hi bahut anupam shaandaar rachanaa bahut badhaai aapko.
mere blog per aane ke liye dhanyawaad
meri nai post aapki tippadi ke intjaar main hai.thanks.

Kunwar Kusumesh said...

बहुत सुन्दर भावाव्यक्ति.

Dr (Miss) Sharad Singh said...

मैं ख़ुशबू बनकर हवा में नहीं बसती,
मैं किरणों की तरह महीन भी नहीं !
मुझे तू ख़्वाबों में मत तराश अभी,
उड़ती तितली की तरह मैं रंगीन नहीं !

अत्यंत हृदयस्पर्शी रचना...

Dr. Zakir Ali Rajnish said...

मन को छू गये आपके भाव...

------
कब तक ढ़ोना है मम्‍मी, यह बस्‍ते का भार?
आओ लल्‍लू, आओ पलल्‍लू, सुनलो नई कहानी।

Maheshwari kaneri said...

मैं ख़ुशबू बनकर हवा में नहीं बसती,
मैं किरणों की तरह महीन भी नहीं ! ...वाह:बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...

अभिषेक मिश्र said...

बुझ गया ये "दीप", सुबह के सितारे के लिए,
खुश हूँ मिटकर भी, मैं ज़रा गमगीन नहीं !

खुशियाँ किसी और की मोहताज होनी भी नहीं चाहिए.

एक उभरती युवा प्रतिभा

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

हर शेर बेहतरीन ...

prerna argal said...

आप की पोस्ट ब्लोगर्स मीट वीकली (१०) के मंच पर शामिल की गई है /आप आइये और अपने विचारों से हमें अवगत करिए /आप हमेशा ही इतनी मेहनत और लगन से अच्छा अच्छा लिखते रहें /और हिंदी की सेवा करते रहें यही कामना है /आपका ब्लोगर्स मीट वीकली (१०)के मंच पर आपका स्वागत है /जरुर पधारें /

Kailash Sharma said...

न आसमाँ है मेरा, न ज़मीन ही है मेरी,
जिसे माना अपना, बेगाना-सा लगे वहीँ !

..बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति...

G.N.SHAW said...

प्रेम की वाणी जब शब्द बन कर फूटती है , तो भावनाए प्रबल हो जाती है ! बहुत सुन्दर

Anonymous said...

lovely poem

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

Bahut Khoob behtarin rachna.

S.N SHUKLA said...

भावपूर्ण रचना , आभार

Arvind kumar said...

khoobsurat......

Suman Dubey said...

बबली जी नमस्कार, सुन्दर भाव -बुझ गया दीप सुबह के सितारे के ----------------

BISHANLAL BANI said...

Bahut badhiyaa...

rajmohan said...

एक नया अनुभव आप से अनायास यूँ मिलना !