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Wednesday, October 19, 2011

बारिश की फुहार

रोए पर्वत,
चूम कर मनाने,
झुके बादल !

कुछ जज़्बात,
काले बादलों जैसे,
छाए मन में !

हल्की फुहार,
रिमझिम के गीत,
रुके न झड़ी !

एक भावना,
उभर कर आई,
बरस गई !

बादल संग,
आँख मिचौली खेले,
पागल धूप !

करे बेताब,
ये भयंकर गर्मी,
होगी बारिश !

झुका के सर,
चुपचाप नहाए,
शर्मीले पेड़ !

गीली आँखें,
कर गई मन को,
हल्का हवा-सा !

ओढ़ चादर,
धरती आसमान,
फुट के रोए !

मन मचला,
हुआ है प्रफुल्लित,
नया आभास !

23 comments:

संजय भास्‍कर said...

दिल को छू लेने वाली कविता

शिवम् मिश्रा said...

बेहद उम्दा भावो से सजी रचना ... आभार !

संजय भास्‍कर said...

बबली जी
नमस्कार !
कोमल अहसासों से भरी रचना जो मन को गहराई तक छू गयी ! सुन्दर प्रस्तुति ........शुभकामनायें !

नीरज गोस्वामी said...

बहुत खूब लिखा है आपने..बधाई स्वीकारें

नीरज

दिगम्बर नासवा said...

बधाई इस लाजवाब रचना पे ...

ऋता शेखर 'मधु' said...

सारे हाइकु बहुत सुन्दर है|आपकी अनुमति मिले तो हाइगा बना सकती हूँ|

Amrit said...

Superb

Amrita Tanmay said...

अच्छी लगी आपकी रचना..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

सुंदर रचना मुझे अच्छी लगी..बधाई

M VERMA said...

रोए पर्वत,
चूम कर मनाने,
झुके बादल !

बेहतरीन प्राकृतिक उपालम्भ ..

shyam gupta said...

सुंदर तिपत्तियाँ ....बहुत खूब...

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

छोटे छोटे छंदों से सजी बड़ी अच्छी कविता!!

Yashwant R. B. Mathur said...

बेहद खूबसूरत!

सादर

डॉ. मोनिका शर्मा said...

गीली आँखें,
कर गई मन को,
हल्का हवा-सा !

Bahut Badhiya

Kailash Sharma said...

बहुत खूब ! लाज़वाब अभिव्यक्ति..

Bharat Bhushan said...

आपने सुंदर हाइकु लिखे हैं. कई भावों को समुचित विविधता के साथ व्यक्ति किया है. खूब.

Rakesh Kumar said...

क्या बात है बबली जी.
बहुत सुन्दर प्रस्तुति है आपकी.
आपने तो बिन मौसम ही बारिश की फुहार से नहला दिया है.

बहुत बहुत आभार.

जयकृष्ण राय तुषार said...

दीपावली की शुभकामनाएं |अच्छी कविता |

Santosh Kumar said...

बहुत सुन्दर हाइकू..
मन को छू गयी.

दीपावली की शुभकामनायें.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

खूब लिखा है
मन हुआ हर्षित
हाईकू खिले.

सादर बधाई...

vidya said...

very nice...each and every composition..congrats.

Dr.NISHA MAHARANA said...

गीली आँखें,
कर गई मन को,
हल्का हवा-सा !सुन्दर प्रस्तुति.

Surendra shukla" Bhramar"5 said...

बबली जी क्या बात है आनंद आ गया प्रकृति की अनुपम छवि के साथ मन के उदगार ..गजब तुलना ..बहुत बहुत आभार
भ्रमर ५
भ्रमर का दर्द और दर्पण

गीली आँखें,
कर गई मन को,
हल्का हवा-सा !

ओढ़ चादर,
धरती आसमान,
फुट के रोए !