तलाश निकले थे कुछ दूर हम, आज़ाद पंछी की तरह, मिल जाए कहीं हमें वो जगह, खुला आकाश, अपनी ज़मीन, पंख फैलाये, हम थे लीन ! जग अपना, खुशियाँ अपनी, लगा जैसे, कहीं वो तो नहीं, आज उड़ने का मन था, कहना कुछ भी कम था, पर पल हर पल एक आस है, आज भी हमें तलाश है ! |
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Monday, October 11, 2010
Posted by Urmi at 6:16 AM
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21 comments:
आप बहुत सुंदर लिखते हैं. कृपया लिखते रहें
बहुत ही खुबसूरत..सुन्दर शब्दों का प्रस्तुतीकरण... यूँ ही लिखते रहें....
मेरे ब्लॉग पर इस बार
एक और आईडिया....
उत्तम रचना....बेहतरीन भावों से सजी लाजवाब पंक्तियाँ....BABLI JI
कुछ तो है इस कविता में, जो मन को छू गयी।
बबली! ईश्वर आपकी हर आस पूरी करे!बहुत सुंदर भाव.
ईश्वर करें यह तलाश अंतहीन न बनें और अपना मुकाम पा जाय -अच्छी कविता !
wah ji wah babli ji...mazaa aa gaya!
bahut sunder.... urmiji ap hamesha khoosurat bhavon ko sajha karti hain....
बहुत अच्छी कविता।
ज़िंदगी भर यूँ ही तलाश लगी रहती है ..सुन्दर अभिव्यक्ति
बबली! कुछ तलाश पूरी होने के लिए नहीं होती...
तलाश ही तो है जो इंसान को जिंदा रखती है। कभी तलाश पूरी हो जाती है तो कभी अनवरत जारी रहती है। बेहतरीन का तो पता नहीं हां कुछ अवारगी की याद दिला गई आपकी रचना.
बहुत अच्छी प्रस्तुति।
सुन्दर भावभिव्यक्ति !
very nice post badhai
आप अपना खुला आकाश जरूर पायें । सुंदर कविता ।
पर पल हर पल एक आस है,
आज भी हमें तलाश है !
आस और विश्वास जीवन का ही दूसरा नाम है
बहुत खूबसूरत रचना
कित्ती प्यारी रचना ...सभी को नवरात्र और दशहरा की बधाइयाँ !!
दशहरा की ढेर सारी शुभकामनाएँ!!
babli ji,kafi dino baad apkey blog par aaya aur ek sunder kavita padhney ka anad liya.meri hardik mangal kamnaye.
sader,
dr.bhoopendra
रचनाएं भेजें, नहीं भेजें के बीच में पहली बार आपका ब्लॉग देखा। समस्या दूर हुई। हम ब्लॉग से ही ले लेंगे। आप अपना पता मुझे मेल कर दें तो आपको पत्रिका कूरियर कर भेजूं। जहां तक कविताओं का सवाल है वाकई आप बहुत अच्छा लिखती हैं। इसके लिए आप बधाई की पात्र हैं।
केवल तिवारी
उप समाचार संपादक
नईदुनिया
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