मोहब्बत भरी ज़िन्दगी कभी करती है आँख मिचौली, कभी सजाये सपनों की डोली, शरारत उम्र भर करती ही रहती, है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी ! कभी खुशियों का मेला लगता है, कभी जीवन झमेला लगता है, कभी चुराए हमसे ये नज़र, है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी ! अपनों से जुदा कर देती है, आँखों में पानी भर देती है, कोई कितनी शिकायत करेगा, है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी ! दूर ये हो तो गम होता है, आँखों का दरिया नम होता है, ख़ुद अपनी मर्ज़ी से चलती है, है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी ! आँसूं भी हो तो पी लेते हैं, पल दो पल ख़ुशी से जी लेते हैं, पलभर न रोका हमें कभी, है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी ! कभी पास है तो कभी दूर है, इसकी नज़ाकत भी नूर है, जीना भी हमको सिखाती है ये, है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी ! ज़िन्दगी गुज़र जाये तकरार में, बेहतर है ये गुज़र जाये प्यार में, इतनी इजाज़त है ज़िन्दगी से, है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी ! |
---|
Saturday, December 24, 2011
Posted by Urmi at 2:34 AM 30 comments
Sunday, December 18, 2011
वर्षा ऋतु भीषण गर्मी, तपती है धरती, है परेशान ! नभ की ओर, आँखें लगाए सभी, करते दुआ ! वर्षा की रुत, सूखा पड़ा है खेत, किसान दुखी ! मेघ गरजा, मुसलाधार वर्षा, धरा मुस्काई ! झूमता मन, रिमझिम के गीत, गुनगुनाए ! शीश झुकाए, वर्षा ऋतू में तरु, हरे-भरे से ! चमक उठे, चेहरे हैं सबके, बौछार पड़ी ! |
---|
Posted by Urmi at 1:53 AM 23 comments
Monday, December 12, 2011
तूफ़ान हर ख्वाइश पूरी हो जिसकी ऐसा कोई इंसान नहीं, हर कदम पे हार जाये कुछ भी हो वह तूफ़ान नहीं ! जीतना है अगर तो हारने पर हिम्मत न टूटे, जीवन में किसी मुकाम पर हौसला न छूटे ! वक़्त भले ही कम हो पर जाना है हमको दूर, मुश्क़िलों का कर सामना मंज़िल पाना मंज़ूर ! कितना भी तूफ़ान आ जाये पर हौसला कम न हो, कदम लड़खड़ाये भले पर गिरने का गम न हो ! |
---|
Posted by Urmi at 9:52 PM 34 comments
Sunday, December 4, 2011
प्रकृति का दृश्य नीले नभ में, उड़े पंख फैलाये पंछी, मन को भाये ! सिसकी हवा, उड़ चल रे पंछी, नीड़ पराया ! आस है मुझे, पंछी जैसे मैं उडूं, विश्व में घूमूँ ! धरा की धूल, छूने लगी आकाश, हवा के साथ ! उड़ती फिरूँ, सारी दुनिया देखूँ, मैं गीत गाऊँ ! कभी मैं बैठूँ, प्रकृति को निहारूँ, ख़ुशी से झूमूँ ! ऊषा ने बाँधी, क्षितिज के हाथों में, सूर्य की राखी ! अपूर्व दृश्य, तस्वीर बना डालूँ, क्या करिश्मा ! रश्मि की लाली, सूरज को प्रणाम, धरा के नाम ! धूप सुबह, ओस-सा झिलमिल, इक सपना ! |
---|
Posted by Urmi at 10:17 PM 34 comments
Subscribe to:
Posts (Atom)