सफर मीलों दूर तक जाना है, एक नया जहाँ बनाना है, झुकना मना है, थकना मना है, मंजिल से पहले रुकना मना है ! पता है मुश्किलें तो आयेंगी, मुझको, मेरे हौसले को आज़मायेंगी, पर मैं न डरूंगी, मैं न मरूंगी, सीने में सैलाब लिए, मुश्किलों पर ही टूट पडूँगी ! इन मुश्किल हालातों में, अचानक मेरे ख्यालों में, किसीकी मुस्कान याद आती है, उसकी प्यारी बातें दिल के तार छेड़ जाती है, कोई था, जो मुझे अकेला छोड़ गया, सारे रिश्ते, सारे बंधन, एक पल में ही तोड़ गया ! जब आँखें भर आती है, और यादें तडपाती है, उसकी आवाज़ कहीं से आती है, हौसला ना हार, कर सामना तूफ़ान का, तू ही तो रंग बदलेगा आसमान का ! करता जा अपनी मंजिल की तलाश; तेरे साथ चलेंगे ये दिन ये रात; चलेगी ये धरती, ये सकल आकाश ! काटों को फूल समझता चल; बाधा को धूल समझता चल; पर्वत हिल जाए, ऐसा चल; धरती फट जाए ऐसा चल; चल ऐसे की, तूफ़ान भी शरमाये तेज़ तेरा देखकर, ज्वालामुखी भी ठण्ड पर जाए ! |
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Thursday, September 17, 2009
Posted by Urmi at 6:02 PM
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18 comments:
"काटों को फूल समझता चल;
बाधा को धूल समझता चल;
पर्वत हिल जाए, ऐसा चल;
धरती फट जाए ऐसा चल;
चल ऐसे की, तूफ़ान भी शरमाये
तेज़ तेरा देखकर,
ज्वालामुखी भी ठण्ड पर जाए!"
मनोभावों की सुन्दर विवेचना है।
बधाई!
क्या हसीन ख्याल है और क्या हसीन ब्लॉग है जी चाहता है इस को देखते देखते उमर तमाम कर दू
bhav purn rachana.
Wow this is so nice and motivating !! I am highly motivated and u know why i need these kind of words..Overall lovely ..
सुन्दर रचना के लिये बधाई ।
" babli, aapki lekhani ko sacche dil se salam ..abhivyakti sidhe dil me utarti hai "
----- eksacchai {AAWAZ}
http://eksacchai.blogspot.com
http://hindimasti4u.blogspot.com
bhavpoorn aur pyaari rachana .
काटों को फूल समझता चल;
बाधा को धूल समझता चल;
पर्वत हिल जाए, ऐसा चल;
धरती फट जाए ऐसा चल;
चल ऐसे की, तूफ़ान भी शरमाये
तेज़ तेरा देखकर,
ज्वालामुखी भी ठण्ड पर जाए !
bahut hi khoobsoorat
झुकना मना है, थकना मना है,
मंजिल से पहले रुकना मना है !
बहुत खूबसूरत ज़ज़्बा पिरोया है आपने.
बेहतरीन रचना
wah wah wah...
urmi ji, kya baat kahi hai aapne...
chal aise ki toofan bhi sharmaaye...
लाजवाब अभिव्यक्ति, शानदार रचना। बधाई...........,,,,,,,
abhibyakti bahut sunder hai. bhaonaon ko ukerati kabita .shabdon ka mayajal sab kuch acha hai.badhai subhkamnaen.
kishore jain ghy assam
I remember my schooldays and kavithas when I read yours... nice ones
"काटों को फूल समझता चल;
बाधा को धूल समझता चल;
पर्वत हिल जाए, ऐसा चल;
धरती फट जाए ऐसा चल;
चल ऐसे की, तूफ़ान भी शरमाये
तेज़ तेरा देखकर,
ज्वालामुखी भी ठण्ड पर जाए!"
बहुत खूब.
काटों को फूल समझता चल;
बाधा को धूल समझता चल;
पर्वत हिल जाए, ऐसा चल;
धरती फट जाए ऐसा चल;
babliji acha laga aapko padhker
ye kavita v khasker eska ye bandh behad kavytmakta liye hai ...
बहुत ही सुन्दर रचना बबली जी
बहुत ही सुन्दर रचना बबली जी
काटों को फूल समझता चल;
बाधा को धूल समझता चल;
पर्वत हिल जाए, ऐसा चल;
bahut hi khoobsoorat
बहुत ही भावपूर्ण निशब्द कर देने वाली रचना . गहरे भाव.
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