अरमान
नीले नीले आसमान तले, बैठी थी मैं अरमान लिए, दूर कहीं जाना था मुझे, पर बैठ गई मैं हाथ मले !
बदल गया मौसम का रंग, रह गई रूप मैं देख दंग, मेरा मन पागल सा झूमा, भँवरे ने कलियों को चूंमा !
अरमानों ने ली अंगड़ाई, मुखड़े पर खुशियाँ है छाई, चलते चलते रुक गए कदम, बेदम दिल ने पाया है दम !
बह गई उसी पल एक हवा, बन गया शीत सा गरम तवा, क्या सोचा था और क्या पाया, चलकर बसंत द्वारे आया !
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16 comments:
वाह बिटिया!
अब आपकी कलम में वाकई सुधार आ गया है।
अच्छे लेखन के लिए बधाई!
कविता में सारे शब्द अर्थवान हो उठे हैं ।
NAMASKAAR BABLI JI
LAJWAAB RACHNA
Bahut hi sundar kalpna!
बहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने
बधाई
जीवन के परिवर्तनशील रंगों को उकेरती सशक्त रचना ....बधाई
बैठे नील गगन के नीचे पूरे हों अरमान।
हो निखार रचना में प्रतिदिन और बढ़े सम्मान।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ek sundar rachna
Beautiful and touchy words !! This is an outstanding poem !! Very well written !! Congratulations.
बहुत ही गहरे भाव लगे इस रचना में , इस सुन्दर रचना के लिए आपको बहुत-बहुत बधाई ।
बिलकुल ठीक .. शरद रितु मे बसंत ऋतु की कविता पढकर मज़ा आ गया .. अरे वहाँ कहीं बसंत तो नही है ?
वासंती हवा
जीवन के सारे दर्द
पल भर में ले उड़ती है
इस एक पल के लिए
अरमानों को
नील गगन के तले
जाने कब तक तपस्या करनी पड़े
सुंदर भाव जगाती प्यारी कविता
...बधाई।
har baar kee tarah is baar bhi achhi rachna. beech mein samay nahi mila to aa nahi saka. aap bhi vyast thi kya? kabhi fursat to aaiyega.
http://ab8oct.blogspot.com/
http://kucchbaat.blogspot.com/
nice
वाह१ सचमुच बढिया है.
bahut achhi rachna !!!!
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