उलझन ये ज़िन्दगी उलझनों से भरी है, जो उलझती सुलझती और फिर उलझन बन जाती है, ज़िन्दगी में कुछ करने का सपना देखा है, पर वो हकीकत नहीं एक सपना बनकर ही टूट जाता है ! आखिर क्यूँ उलझने आती हैं? क्यूँ सपने बिखर जाते हैं? क्या सपने कभी हकीक़त नहीं हो सकते? कोई उम्मीद की किरण क्यूँ नहीं दिखाई देती? ज़िन्दगी तो एक जुआ जैसा खेल है, हार और जीत दोनों ही इसमें शामिल है, हम सपने क्यूँ देखते हैं? सपने तो जैसे अँधेरी गुफाओं में खो जाते हैं ! उलझन में हम यूँ ही उलझते रहे, सपने यूँ ही सजते रहे, उलझन लिपटती रही साये की तरह, हम तड़प उठे सूखे पत्तों की तरह ! |
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Wednesday, October 21, 2009
Posted by Urmi at 11:16 PM
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14 comments:
बबली जी!
मैं भी इस क्यों का उत्तर आज तक ढूँढ रहा हूँ,
मगर अब तक नही मिला है।
आपका गद्यगीत बहुत बढ़िया है।
बधाई!
" bahut hi behtarin sawalin ke saath aapka swagat hai ...aur badhai "
----- eksacchai { aawaz }
http://eksacchai.blogspot.com
behatrin shabdo ka taal mel buna hai aapne bahut bahut badhai
http/jyotishishore.blogspot.com
Nice One! Babli Ji aaj kal "sach mein" par aanaa bilkul band kar diyaa aapne!
उलझन में हम यूँ ही उलझते रहे,
सपने यूँ ही सजते रहे,
उलझन लिपटती रही साये की तरह,
हम तड़प उठे सूखे पत्तों की तरह !
जिन्दगी का सच तो यही है बबली जी !
आपकी कविता पढ़कर बहुत अच्छा लगा !
आभार
बबली जी ,
आपकी कविता दार्शनिकता का पुट लिये हुए है.
हमारा तो कहना है:-
जिंदगी जैसे चल रही है चलती रहने देना चाहिये
समझौते तो करने पड़ते हैं कर ही लेने चाहिये
ये ज़िन्दगी उलझनों से भरी है,
जो उलझती सुलझती और फिर उलझन बन जाती है,
बहुत खूब लिखा है.
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उलझन मे उलझे बिना
उलझन नही सुलझती
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सरस, रोचक और एक सांस में पठनीय रचना के लिए बधाई।
bahut khoooob....
Real Beautiful Poem !! Loved the each words !! So Touchy ! Thanks for sharing..Unseen Rajasthan
sab ne sahi kaha aapki ye rachana bahut sundar hai,badhai ho .
उलझनों के ही सहारे कट रही है जिन्दगी
जो न होती उलझने कुछ और होती जिन्दगी .
खयाल अच्छा है , और बयान भी.
बहुत ही सुन्दर रचना, उलझने कई बार बहुत कुछ कहती सी लगती हैं हम उन्हें यूं व्यक्त कर जाते हैं या फिर उन्हीं में एक राह तलाश कर लेते है, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई ।
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