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Saturday, March 13, 2010



मेरी प्यारी दादीमा

सबसे प्यारी सबसे मीठी,
मेरी प्यारी प्यारी दादी !


रोज शाम को मुझे पढ़ाती,
रात को मुझको लोड़ी सुनाती !

दोस्तों से जब लड़ाई होती,
दादीमा के गोद में आकर लेट जाती !

तरह तरह के मिठाई बनाती,
दादीमा मुझे अपने हाथ से खिलाती !

खेलने जाती पकड़कर दादीमा का हाथ,
कभी न छोड़ती उनका साथ !

पापा मम्मी से जब डांट पड़ती,
आकर दादीमा के गले लग जाती !

हमेशा मुझको प्यार करती,
दादीमा प्यार से हर बात समझाती !

मंदिर जैसे भगवान बिना,
बगैर दादीमा के घर है सुना !


13 comments:

संजय भास्‍कर said...

ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

संजय भास्‍कर said...

मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!

tareef ke liye..

kala-waak.blogspot.in said...

aap acha likhti hain...likethe rahen...hardik subhkama.
Dr. Rajesh Kumar Vyas

Apanatva said...

bahut sunder bhav ......

jamos jhalla said...

दादी माँ लौट के कयूं नहीं आती|?

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

babli ji....

bagair dadimaa ke ghar hai "suna" nahi...

"soona"shaayad truti ho gayi hai...

maaf kariyega!

पूनम श्रीवास्तव said...

bahut hi sundar va bhavpoorn rachna...mujhe apni dadi ma ke haatho k besan ke laddu yad a gaye.....
itni pyari rachna ke liye badhai...
poonam

Parul kanani said...

dadi..nani...kehani........sab jaise ab ek mithi si yaad hai..aisi hi ye rachna bhi :)

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

दादी के दो अक्षर में ही प्यार छिपा होता है!
एक अनूठा अनुभव का संसार छिपा होता है!!

विजयप्रकाश said...

बहुत सुंदर...बचपन याद दिला दिया आपने.

शरद कोकास said...

दादी को अच्छा लगेगा यह जानकर ।

Neeraj Kumar said...

पढने में तो बाल कविता लगती है, लेकिन हर व्यक्ति के अंतर जो समाया है बालक उसे जगा जाती है... दादी और नानी ही होती हैं जो सदा दुलराती-सहलाती हैं स्नेह से और केवल बालक रूप ही देखती हैं...

ज्योति सिंह said...

bahut pyaari rachna ,daadi ka adbhut hai .sundar .