मेरी प्यारी दादीमा सबसे प्यारी सबसे मीठी, मेरी प्यारी प्यारी दादी ! रोज शाम को मुझे पढ़ाती, रात को मुझको लोड़ी सुनाती ! दोस्तों से जब लड़ाई होती, दादीमा के गोद में आकर लेट जाती ! तरह तरह के मिठाई बनाती, दादीमा मुझे अपने हाथ से खिलाती ! खेलने जाती पकड़कर दादीमा का हाथ, कभी न छोड़ती उनका साथ ! पापा मम्मी से जब डांट पड़ती, आकर दादीमा के गले लग जाती ! हमेशा मुझको प्यार करती, दादीमा प्यार से हर बात समझाती ! मंदिर जैसे भगवान बिना, बगैर दादीमा के घर है सुना ! |
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Saturday, March 13, 2010
Posted by Urmi at 11:30 PM
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13 comments:
ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .
मेरे पास शब्द नहीं हैं!!!!
tareef ke liye..
aap acha likhti hain...likethe rahen...hardik subhkama.
Dr. Rajesh Kumar Vyas
bahut sunder bhav ......
दादी माँ लौट के कयूं नहीं आती|?
babli ji....
bagair dadimaa ke ghar hai "suna" nahi...
"soona"shaayad truti ho gayi hai...
maaf kariyega!
bahut hi sundar va bhavpoorn rachna...mujhe apni dadi ma ke haatho k besan ke laddu yad a gaye.....
itni pyari rachna ke liye badhai...
poonam
dadi..nani...kehani........sab jaise ab ek mithi si yaad hai..aisi hi ye rachna bhi :)
दादी के दो अक्षर में ही प्यार छिपा होता है!
एक अनूठा अनुभव का संसार छिपा होता है!!
बहुत सुंदर...बचपन याद दिला दिया आपने.
दादी को अच्छा लगेगा यह जानकर ।
पढने में तो बाल कविता लगती है, लेकिन हर व्यक्ति के अंतर जो समाया है बालक उसे जगा जाती है... दादी और नानी ही होती हैं जो सदा दुलराती-सहलाती हैं स्नेह से और केवल बालक रूप ही देखती हैं...
bahut pyaari rachna ,daadi ka adbhut hai .sundar .
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