तलाश न कोई मक्सद था न कोई मंजिल, न जाने फिर क्यूँ पुकारता ये दिल ! निकल पड़े जब मंजिल पर हम, भुलाके अपने सारे दुःख और गम ! चाह थी उड़ने की आज़ाद पंछियों की तरह, सुकून भरा जीवन मिले जिस जगह ! खुला आसमां फैला ये जहां, दिल ने चाहा उड़ती फिरूँ यहाँ वहाँ ! एहसास हुआ जैसे दिल है खाली, लगा पंख फैलाये मैं उड़ने वाली ! |
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Tuesday, March 9, 2010
Posted by Urmi at 10:24 PM
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10 comments:
खुला आसमां फैला ये जहां,
दिल ने चाहा उड़ती फिरूँ यहाँ वहाँ !
एहसास हुआ जैसे दिल है खाली,
लगा पंख फैलाये मैं उड़ने वाली !
इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....
bahut sunder abhivykti.
बहुत ही सुंदर रचना.
धन्यवाद
बेहतरीन। लाजवाब।
सकारात्मक सोच के साथ लिखी रचना...बढ़िया लगी
dil khush kar diya babli ji aapne...
बहुत ही खूबसूरत रचना लगी ।
बहुत खूब , कुछ अलग सी !
शुभकामनाएं बबली जी !!
जब कोई मंज़िल ही नहीं थी तो किस मंज़िल पर निकल पड़े ?
खुला आसमां फैला ये जहां,
दिल ने चाहा उड़ती फिरूँ यहाँ वहाँ !
एहसास हुआ जैसे दिल है खाली,
लगा पंख फैलाये मैं उड़ने वाली !sundar ati sundar lagi .
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