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Tuesday, March 9, 2010




तलाश

कोई मक्सद था कोई मंजिल,
जाने फिर क्यूँ पुकारता ये दिल !

निकल पड़े जब मंजिल पर हम,
भुलाके अपने सारे दुःख और गम !

चाह थी उड़ने की आज़ाद पंछियों की तरह,
सुकून भरा जीवन मिले जिस जगह !

खुला आसमां फैला ये जहां,
दिल ने चाहा उड़ती फिरूँ यहाँ वहाँ !

एहसास हुआ जैसे दिल है खाली,
लगा पंख फैलाये मैं उड़ने वाली !






10 comments:

संजय भास्‍कर said...

खुला आसमां फैला ये जहां,
दिल ने चाहा उड़ती फिरूँ यहाँ वहाँ !
एहसास हुआ जैसे दिल है खाली,
लगा पंख फैलाये मैं उड़ने वाली !


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

Apanatva said...

bahut sunder abhivykti.

राज भाटिय़ा said...

बहुत ही सुंदर रचना.
धन्यवाद

मनोज कुमार said...

बेहतरीन। लाजवाब।

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सकारात्मक सोच के साथ लिखी रचना...बढ़िया लगी

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

dil khush kar diya babli ji aapne...

Mithilesh dubey said...

बहुत ही खूबसूरत रचना लगी ।

Satish Saxena said...

बहुत खूब , कुछ अलग सी !
शुभकामनाएं बबली जी !!

शरद कोकास said...

जब कोई मंज़िल ही नहीं थी तो किस मंज़िल पर निकल पड़े ?

ज्योति सिंह said...

खुला आसमां फैला ये जहां,
दिल ने चाहा उड़ती फिरूँ यहाँ वहाँ !
एहसास हुआ जैसे दिल है खाली,
लगा पंख फैलाये मैं उड़ने वाली !sundar ati sundar lagi .