गर्मी गर्मी और तेज़ धूप में है बेहाल, कैसे बयान करें कोई अपना हाल, न दिखते हैं कहीं पंछियाँ, न गूंजे संगीत न दिखे तितलियाँ ! रंग बिरंगे फूलों से भरे पौधे, गर्मी में सुखकर झड़ रहे हैं पत्ते, मज़दूरी करके पेट पालते हैं गरीब, बन चुका है अब यही उनका नसीब ! इंतज़ार रहता है सूरज के उगने का, पर वही सूरज की किरण लेती है जान, जलती गर्मी में दोपहर के वक़्त, पानी के लिए तरसता है हर शक्स ! |
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Saturday, March 20, 2010
Posted by Urmi at 3:27 AM
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9 comments:
न दिखते हैं कहीं पंछियाँ,
न गूंजे संगीत न दिखे तितलियाँ .nice
रंग बिरंगे फूलों से भरे पौधे,
गर्मी में सुखकर झड़ रहे हैं पत्ते,
मज़दूरी करके पेट पालते हैं गरीब,
बन चुका है अब यही उनका नसीब !
LAJWAAB PANKTIYA PASAND AAI
BABLI JI JWAAB NAHI AAPKA
बहुत अच्छी प्रस्तुति। सादर अभिवादन।
misthi
awesome is the word!
बहुत सुंदर...ग्रीष्म ऋतु का यथार्थ एवं सुंदर वर्णन किया है.
babli.......ye bhoot to ro padaa aaj....ab kuchh bola nahin jata...!!
रंग बिरंगे फूलों से भरे पौधे,
गर्मी में सुखकर झड़ रहे हैं पत्ते,
मज़दूरी करके पेट पालते हैं गरीब,
बन चुका है अब यही उnaka naseeb
bahut hi sndar geet babli ji ek behatareen rachana ke liye badhai.
urmi ji sunder rachnayen hai.. bhavpoorn!
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