नन्हा बच्चा राह पर चलते चलते एक नन्हे बच्चे को रोता हुआ पाया, अपने ही शैशव की छवि को उसमें प्रतिबिम्बित देखा ! दर्द हुआ देखकर उस शिशु को बिन माँ के बिलखते हुए, भूख से तड़प रहा था और आँखों से आंसू टपक रहा था !कितने बेरहम होंगे जो अपनी संतान को छोड़ गया, उस परिस्थिति को देख मैंने ख़ुद को लाचार पाया ! न जाने अचानक से एक साधू बच्चे की ओर आ गए, ऐसा लगा मानो भगवान के रूप में साधू धरती पर पधारे ! नन्हे से बच्चे ने आश्चर्यचकित होकर साधू की ओर देखा, बिना रोये मुस्कुराते हुए साधू की गोद में चला गया ! उस शिशु को हँसता हुआ देखकर दिल को सुकून मिला, साधू ने उस नन्हे बच्चे को अपने आश्रम में आश्रय दिया ! |
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Friday, April 23, 2010
Posted by Urmi at 7:00 AM 19 comments
Sunday, April 18, 2010
सूरज सूर्योदय और सूर्यास्त नियमित होता है, सुख और दुःख में जीवन व्यतीत होता है ! सूरज के उगते ही दिन की शुरुआत होती है, हर तरफ चहल पहल और मुस्कराहट होती है ! लोग नौकरी पर और बच्चे पढ़ने जाते हैं, दिनभर सब काम में उलझे रहते हैं ! सूरज के ढलते ही पंछी घर लौट आते हैं, संध्या का आगमन होने का एहसास दिलाते हैं ! राह देखते हैं सब सवेरा होने का, कामना करते हैं अगले दिन मंगलमय होने का ! |
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Posted by Urmi at 10:55 PM 18 comments
Tuesday, April 13, 2010
अपने हुए पराये पुत्र अकेला है विदेश में, माता पिता स्वदेश में ! अब तक भेजा नहीं पता, वह दूर देश में हुआ लापता ! न कोई ख़त न सन्देश, सुहाते नहीं भजन उपदेश ! वह सात समंदर पार गया, मम्मी पापा को भूल गया ! आँखों से आंसू झरते हैं, गम हम दामन में भरते हैं ! उसकी याद सताती है, हमें हरदम तड़पाती है ! दिन बीतता गया महीना बीता, ख़बर के बिना अब कैसे जीता ! भूल गया वो पर भूला न उसे कोई, क्या एक पल भी याद न तुझे आया कोई? परदेस छोड़कर हो जा रवाना, दौलत स्वदेस में खूब कमाना ! रिश्तों की एहमियत को समझ, क्या यही शिक्षा मिली है तुझे नासमझ? |
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Posted by Urmi at 3:16 AM 26 comments
Thursday, April 8, 2010
झूठे जग का झूठा नाता घर के चारों ओर, नन्ही चिड़िया मन की सच्ची,मचा था कितना शोर, दाना खाती लगती अच्छी ! मेहनत से घोंसला बनाया, चुन कर तिनके उसे सजाया, लेकिन टूट गया संसार, बिखर गया उसका घर-बार ! कौन संवारे उसके घर को, भटक रही है वो दर-दर को, अण्डे देगी कहाँ बिचारी, चिड़िया फिरती मारी-मारी ! क्या होगा उस मासूम चिड़िया का, उसकी व्यथा कोई समझ न पाता, सब अपने काम में उलझे रहता, झूठे जग का झूठा नाता ! |
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Posted by Urmi at 3:16 AM 22 comments
Friday, April 2, 2010
सुमन नन्ही सी कली खिल गयी जब, रंग के अभिनव जगत से मिल गयी तब, गुदगुदाती है सुगन्धें मन मेरा, मुस्कुराती देखकर तुमको धरा ! रात अपनी पंखुरियों को समेटती, सुबह होते ही अपनी छटा बिखेरती, देखकर सौंदर्य कलियाँ खिल उठी, ह्रदय में मुस्कान मानो पल उठी ! छा गए जीवन में नूतन रंग हैं, मन-सुमन दोनों हंसें इक संग हैं, सीख देते हैं अनोखी यह सुमन, महकता है इन्हीं से मन का चमन ! |
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Posted by Urmi at 1:06 PM 22 comments
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