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Wednesday, May 5, 2010



दुनिया

सोचती हूँ कितनी अजीब है दुनिया,
बहुत हैं गम मगर कम है यहाँ खुशियाँ !


कभी मौसम सुहाना है,
कभी तन्हा सा है आलम,
कभी बरसात बिन बादल,
कभी सूखा बहुत जालिम !

कभी है बाढ़ सी आती,
कभी आँधी व ओले हैं,
कभी निर्दोष लोगों पर,
बरसते बम के गोले हैं !

गगन ने ओढ़ ली फिर से,
कलुषता से भरी चादर,
झमाझम पड़ रही बारीश,
मगर खाली पड़ी गागर !

सोचती हूँ कितनी अजीब है दुनिया,
बहुत हैं गम मगर कम है यहाँ खुशियाँ !


17 comments:

Dev K Jha said...

यही दुनियां है, यही ज़िन्दगी है...

nilesh mathur said...

वाह! बहुत सुन्दर !

राज भाटिय़ा said...

इसी का नाम है जिन्दगी

Ra said...

यही तो जिंदगी है ,,,,अच्छा बयां किया है ....अच्छी रचना

Indranil Bhattacharjee ........."सैल" said...

वाह बहुत बढ़िया ... अच्छी रचना है !

संजय भास्‍कर said...

ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.

Apanatva said...

jindgee such hee kai rang sanjoe hai ........

मनोज कुमार said...

बहुत सुन्दर रचना।

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aao khushiyon ki talaash karein...

Anonymous said...

बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...अंतर्मन के भाव खूबसूरती से प्रस्फुटित होते हैं. !!


____________________
बबली जी,
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com

jamos jhalla said...

वाकई बहुत अजीब है यह हमारी दुनिया|

Unknown said...

बहुत खूबसूरत

सम्वेदना के स्वर said...

मानव और प्रकृति के सम्बंधों पर अच्छी कविता...

पूनम श्रीवास्तव said...

babli ji kavita padh kar kewal ek shabd nikalta hai---wah!
poonam

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जिंदगी के सारे मौसम दिखा दिए....बहुत खूब

Deepak Shukla said...

Hi..
Bahut hai gum..
Khushian hai kam..
Fir bhi, jee rahe hain hum..

WAH dil khush hua..
Guldasta-e-shayari ka follower pahle se hun, aur aaj se es blog ka bhi..
Dekhten hai aapke khajane main kya kya chhupa rakha hai,

DEEPAK..

Unknown said...

nice.. i like ur poems ..simple yet deep ...