दुनिया सोचती हूँ कितनी अजीब है दुनि बहुत हैं गम मगर कम है यहाँ खुशियाँ ! कभी मौसम सुहाना है, कभी तन्हा सा है आलम, कभी बरसात बिन बादल, कभी सूखा बहुत जालिम ! कभी है बाढ़ सी आती, कभी आँधी व ओले हैं, कभी निर्दोष लोगों पर, बरसते बम के गोले हैं ! गगन ने ओढ़ ली फिर से, कलुषता से भरी चादर, झमाझम पड़ रही बारीश, मगर खाली पड़ी गागर ! सोचती हूँ कितनी अजीब है दुनि बहुत हैं गम मगर कम है यहाँ खुशियाँ ! |
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Wednesday, May 5, 2010
Posted by Urmi at 11:40 AM
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17 comments:
यही दुनियां है, यही ज़िन्दगी है...
वाह! बहुत सुन्दर !
इसी का नाम है जिन्दगी
यही तो जिंदगी है ,,,,अच्छा बयां किया है ....अच्छी रचना
वाह बहुत बढ़िया ... अच्छी रचना है !
ऐसी कवितायें रोज रोज पढने को नहीं मिलती...इतनी भावपूर्ण कवितायें लिखने के लिए आप को बधाई...शब्द शब्द दिल में उतर गयी.
jindgee such hee kai rang sanjoe hai ........
बहुत सुन्दर रचना।
aao khushiyon ki talaash karein...
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...अंतर्मन के भाव खूबसूरती से प्रस्फुटित होते हैं. !!
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बबली जी,
'सप्तरंगी प्रेम' ब्लॉग पर हम प्रेम की सघन अनुभूतियों को समेटती रचनाओं को प्रस्तुत कर रहे हैं. आपकी रचनाओं का भी हमें इंतजार है. hindi.literature@yahoo.com
वाकई बहुत अजीब है यह हमारी दुनिया|
बहुत खूबसूरत
मानव और प्रकृति के सम्बंधों पर अच्छी कविता...
babli ji kavita padh kar kewal ek shabd nikalta hai---wah!
poonam
जिंदगी के सारे मौसम दिखा दिए....बहुत खूब
Hi..
Bahut hai gum..
Khushian hai kam..
Fir bhi, jee rahe hain hum..
WAH dil khush hua..
Guldasta-e-shayari ka follower pahle se hun, aur aaj se es blog ka bhi..
Dekhten hai aapke khajane main kya kya chhupa rakha hai,
DEEPAK..
nice.. i like ur poems ..simple yet deep ...
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