आख़िर क्या लिखूँ बारिश का वो भीगा पानी, और हवा में थी जो रवानी, क्या उस मौसम का ख़ुमार लिखूँ? आँखों में थी थोड़ी शरारत, और बातों में वो नज़ाकत, क्या उनके रंगीन मिजाज़ लिखूँ? उनका आकर मुस्कुराना, जो रूठ जाऊँ तो मनाना, क्या उनका ये अंदाज़ लिखूँ? हर शाम एक दिया जलाना, सोयी उम्मीद को रोज़ जगाना, क्या उनका ये इंतज़ार लिखूँ? |
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Tuesday, May 25, 2010
Posted by Urmi at 12:22 PM
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16 comments:
लिख तो दिया यार सब कुछ ।
क्या रह गया सार
अब कुछ ॥
दिल होगा लाचार
तब कुछ।
था मिलने का आसार जब कुछ॥
*
अच्छी लगी आपकी पंक्तियां।बधाई!
*
आप के तो दिन होगा।हम ने तो रात को ही दिन बना रखा है।अभी अभी नई पोस्ट लगाई है।गर्मी बहुत है।यहां पारा 49॰ है।
www.omkagad.blogspot.com
cell-09414380571
उस मौसम का ख़ुमार लिखूं.nice
Hi..
Likhna hi gar tum chaho to..
Priyatam ka manuhaar likho..
Aankhon main jo dikhta tere..
Sajan ka wo pyaar likho..
Tere geeton, gazlon main jo..
Sada basa sa lagta hai..
Jiske spandan se jhankrut hai..
Man veena ki taar likho..
Aankhon main jo tere dikhta..
Sajan ka wo pyaar likho..
Sundar kavita..
DEEPAK..
हर शाम एक दिया जलाना,
सोई उम्मीद को रोज़ जगाना,
क्या उनका ये इंतज़ार लिखूँ?
अच्छी पंक्तियां,,,,शानदार प्रस्तुति
आपने इन्तजार को बहुत सुन्दर रूप में
प्रस्तुत किया है!
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कविता बहुत अच्छी बनाई है!
हर शाम एक दिया जलाना,
सोई उम्मीद को रोज़ जगाना,
क्या उनका ये इंतज़ार लिखूँ?
.....अच्छी लगी आपकी पंक्तियां।बधाई
अब त लिखने के लिए कुछ बाकी नहीं रहा... एतना खूबसूरत कबिता है!! बहुत सुंदर!!!
वाह ! बहुत सुन्दर रचना ... लाजवाब !
सार्थक और बेहद खूबसूरत,प्रभावी,उम्दा रचना है..शुभकामनाएं।
'हर शाम एक दिया जलाना,
सोई उम्मीद को रोज़ जगाना'
-उम्मीद पर दुनिया कायम है.
आखिर क्या लिखूंं। पूछते पूछते सब कुछ लिख दिया। भई वाह। क्या बात है। ये भी एक अदा है। बहुत खूबसूरत । हां बारिश को सही कर लें। कविता का पहला शब्द ही गलत हो तो बड़ा नकारात्मक असर पड़ता है।
http://udbhavna.blogspot.com/
लिखो जो दिल कहता है
कभी आंसू लिखो, कभी प्यार लिखो
आपकी पोस्ट पढ़ कर अच्छा लगा।
अच्छी रचना हेतु बधाई। समस्या
समाधान की दिशा में लिखने
हेतु कुछ नए विषय----
"प्यार लिखो, मनुहार लिखो,
हास लिखो, शृंगार लिखो।
लिखने के फ़लसफ़े हजारों,
दो आँखॊं को चार लिखॊ॥
ममता का आभार लिखो,
जीवन का विस्तार लिखो।
नूतन मेघ मल्हार लिखो,
सावन की बौछार लिखो॥"
आदि..आदि
सद्भावी- डॉ० डंडा लखनवी
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आख़िर क्या लिखूँ .....?
itna kuch to aapney likh liya hai...achichi prastuti..
bhut hi shaandaar likhi hai aapne ye kavita.. baar baar padhne ka ji chaahta hai... ise padh kar mje bhi meri ek kuch isi prakar ki phle likhi kavita yaad aa gyi hai.. aap jald hi use mere blog par paygengi.
shukriya.. aur badhai.
वाह वाह--क्या बात है
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