रिश्ता
तुम्हारी खुशी से ही नहीं, गम से भी रिश्ता है हमारा, ये जो तुम्हारी ज़िन्दगी है, वो एक हिस्सा है हमारा !
प्यार का रिश्ता बहुत गहरा है हमारा, सिर्फ़ लफ़्ज़ों का ही नहीं, रूह का भी रिश्ता है हमारा, तुम बिन अब जीना नहीं है गवारा !
बस एक गुज़ारिश है तुमसे मेरी, एक शाम चुरा लूँ मैं तुम्हारी, तुम चाहो तो भुला देना मुझे, पर मैं न भुला पाऊँगी तुझे !
मेरे हाथों से गिर गई लकीरें कहीं, भूल आई हूँ अपनी तकदीर कहीं, अगर तुम्हें मिले तो उठा लेना, मेरे हिस्से की हर खुशी हाथों में सजा लेना !
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24 comments:
बहुत बढ़िया लिखा है!
बस एक गुज़ारिश है तुमसे मेरी,
एक शाम चुरा लूँ मैं तुम्हारी,
तुम चाहो तो भुला देना मुझे,
पर मैं न भुला पाऊँगी तुझे !
यह छंद तो बहुत ही खूबसूरत है।
बधाई!
बहुत अच्छी रचना लगी. सुन्दर भाव!!
मेरे हाथों से गिर गई लकीरें कहीं,
भूल आई हूँ अपनी तकदीर कहीं,
बेहतरीन भाव की नाजुक सी रचना
बहुत सुन्दर
अद्भुत मुग्ध करने वाली, विस्मयकारी।
bahut khoob babli ji !
gazab ka kaam
प्यार का रिश्ता बहुत गहरा है हमारा,
सिर्फ़ लफ़्ज़ों का ही नहीं,
रूह का भी रिश्ता है हमारा,
तुम बिन अब जीना नहीं है गवारा !
abhinandan is maasoom kavita ke liye !
सुन्दर रचना । आभार ।
कविता के हर शब्द में छुपा नया एहसास।
सुमन कामना रोज बढ़े आपस का विश्वास।।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
www.manoramsuman.blogspot.com
ati sundar
love is other name of sacrifice.
excellent expression.
तुम्हारी खुशी से ही नहीं,
गम से भी रिश्ता है हमारा,
ये जो तुम्हारी ज़िन्दगी है,
वो एक हिस्सा है हमारा !
प्यार का रिश्ता बहुत गहरा है हमारा,
aati sunder
मेरे हाथों से गिर गई लकीरें कहीं,
भूल आई हूँ अपनी तकदीर कहीं,
अगर तुम्हें मिले तो उठा लेना,
मेरे हिस्से की हर खुशी हाथों में सजा लेना
बहुत सुन्दर बधाई इस रचना के लिये।
बहुत सुंदर चाह है। बधाई।
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क्या स्टारवार शुरू होने वाली है?
परी कथा जैसा रोमांचक इंटरनेट का सफर।
तुम्हारी खुशी से ही नहीं,
गम से भी रिश्ता है हमारा,
ये जो तुम्हारी ज़िन्दगी है,
वो एक हिस्सा है हमारा !
bahut sundar bhav hai man ke ,bahut pyari rachna
bahut khoob babli ji !
मेरे हाथों से गिर गई लकीरें कहीं,
भूल आई हूँ अपनी तकदीर कहीं,
अगर तुम्हें मिले तो उठा लेना,
पीर से उपजी अनन्यतम अभिव्यक्ति,सुन्दर कल्पना
bahot umda likhti hain aap....sabhi rachnaye achhi lagi.
keep sharing
उर्मी जी,
इस बंदिश ने प्यार में समर्पण की अभिलाषा को पुर्नपरिभाषित किया, बहुत ही खूबसूरत पंक्तियाँ :-
मेरे हाथों से गिर गई लकीरें कहीं,
भूल आई हूँ अपनी तकदीर कहीं,
सादर,
मुकेश कुमार तिवारी
wah wah babli ji kya uttam likha hai...aise he likhti rahiye...
badhaayee...
cheers!
surender
http://shayarichawla.blogspot.com/
मेरे हाथों से गिर गई लकीरें कहीं,
भूल आई हूँ अपनी तकदीर कहीं,
अगर तुम्हें मिले तो उठा लेना,
मेरे हिस्से की हर खुशी हाथों में सजा लेना !
Marmsparshee kavita kee khuubasoorat panktiyan......
bahut hee pyaree rachana lagee aapakee .
भूल आई हूँ अपनी तकदीर कहीं,
अगर तुम्हें मिले तो उठा लेना,
यह पंक्तियाँ अच्छी लगीं
बहुत ही खूबसूरती से आपने रिश्तों को शब्दों में पिरोया है।सुन्दर रचना।
पूनम
बहुत अच्छी रचना लगी, बहुत बढ़िया लिखा है....
सुन्दर कवितायें बार-बार पढने पर मजबूर कर देती हैं. आपकी कवितायें उन्ही सुन्दर कविताओं में हैं.
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