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Saturday, December 24, 2011

मोहब्बत भरी ज़िन्दगी

कभी करती है आँख मिचौली,
कभी सजाये सपनों की डोली,
शरारत उम्र भर करती ही रहती,
है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी !


कभी खुशियों का मेला लगता है,
कभी जीवन झमेला लगता है,
कभी चुराए हमसे ये नज़र,

है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी !

अपनों से जुदा कर देती है,
आँखों में पानी भर देती है,
कोई कितनी शिकायत करेगा,

है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी !

दूर ये हो तो गम होता है,
आँखों का दरिया नम होता है,
ख़ुद अपनी मर्ज़ी से चलती है,

है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी !

आँसूं भी हो तो पी लेते हैं,
पल दो पल ख़ुशी से जी लेते हैं,
पलभर न रोका हमें कभी,
है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी !

कभी पास है तो कभी दूर है,
इसकी नज़ाकत भी नूर है,
जीना भी हमको सिखाती है ये,
है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी !

ज़िन्दगी गुज़र जाये तकरार में,
बेहतर है ये गुज़र जाये प्यार में,
इतनी इजाज़त है ज़िन्दगी से,
है ये मोहब्बत भरी ज़िन्दगी !

Sunday, December 18, 2011

वर्षा ऋतु

भीषण गर्मी,
तपती है धरती,
है परेशान !

नभ की ओर,
आँखें लगाए सभी,
करते दुआ !

वर्षा की रुत,
सूखा पड़ा है खेत,
किसान दुखी !

मेघ गरजा,
मुसलाधार वर्षा,
धरा मुस्काई !

झूमता मन,
रिमझिम के गीत,
गुनगुनाए !

शीश झुकाए,
वर्षा ऋतू में तरु,
हरे-भरे से !

चमक उठे,
चेहरे हैं सबके,
बौछार पड़ी !

Monday, December 12, 2011

तूफ़ान

हर ख्वाइश पूरी हो जिसकी ऐसा कोई इंसान नहीं,
हर कदम पे हार जाये कुछ भी हो वह तूफ़ान नहीं !

जीतना है अगर तो हारने पर हिम्मत टूटे,
जीवन में किसी मुकाम पर हौसला छूटे !

वक़्त भले ही कम हो पर जाना है हमको दूर,
मुश्क़िलों का कर सामना मंज़िल पाना मंज़ूर !

कितना भी तूफ़ान जाये पर हौसला कम हो,
कदम लड़खड़ाये भले पर गिरने का गम हो !

Sunday, December 4, 2011

प्रकृति का दृश्य

नीले
नभ में,
उड़े पंख फैलाये पंछी,
मन को भाये !

सिसकी
हवा,
उड़ चल रे पंछी,
नीड़ पराया !

आस
है मुझे,
पंछी जैसे मैं उडूं,
विश्व में घूमूँ !

धरा
की धूल,
छूने लगी आकाश,
हवा के साथ !

उड़ती
फिरूँ,
सारी दुनिया देखूँ,
मैं गीत गाऊँ !

कभी
मैं बैठूँ,
प्रकृति को निहारूँ,
ख़ुशी से झूमूँ !

ऊषा
ने बाँधी,
क्षितिज के हाथों में,
सूर्य की राखी !

अपूर्व
दृश्य,
तस्वीर बना डालूँ,
क्या करिश्मा !

रश्मि
की लाली,
सूरज को प्रणाम,
धरा के नाम !

धूप
सुबह,
ओस-सा झिलमिल,
इक सपना !

Sunday, November 27, 2011

उन शहीदों को नमन

आज फिर बाँका सिपाही, जंग में इक मर गया,
जाते-जाते साँस अपनी, नाम माँ के कर गया !

झेल कर सीने पे अपने, दुश्मनों के वार को,
फूल बूढ़ी माँ की बगिया का यकायक झर गया !

जिंदगी कैसे कटेगी, माँ की बिन बेटे के अब,
प्रश्न आँखों की नमी का, मौन हर उत्तर गया !

उस सिपाही ने भी चाहा था कि घर आबाद हो,

अब तो उसकी माँ का जीना, हो बहुत दूभर गया !

फक्र करती माँ शहादत पर, तुम्हारी रात दिन,

कहते फिरती बेटा मेरा, करके ऊँचा सर गया
!

उन शहीदों को नमन जो घर की सीमा लाँघ कर,

हँसते-हँसते देश पर, कर जान न्यौछावर गया !


Sunday, November 20, 2011

ख्वाइश

कैसे
कहूँ की अपना बना लो मुझे,
बाहों में अपनी समा लो मुझे !

बिन तुम्हारे एक पल भी कटता नहीं,
तुम आकर मुझी से चुरा लो मुझे !

ज़िन्दगी वो है जो संग तुम्हारे गुज़रे,
दुनिया के ग़मों से अब चुरा लो मुझे !

मेरी सबसे गहरी ख्वाइश हो पूरी,
तुम अगर पास अपने बुलालो मुझे !

ये कैसा नशा है जो बहका रहा है,
तुम्हारा हूँ मैं संभालो मुझे !

नजाने फिर कैसे गुज़रेगी जिंदगानी,
अगर अपने दिल से कभी निकालो मुझे !

Sunday, November 13, 2011

मासूम चिड़िया

एक चिड़िया,
उड़ती हुई आयी,
आँगन में !

देखा उसको,
चारों ओर देखते,
आँखें प्यारी-सी !

दाना खिलाया,
मुझे देखती रही,
बड़े प्यार से !

कुछ देर में,
पंख फैलाये उड़ी,
हुई उदासी !

अगले दिन,
सुबह वहीँ बैठे,
उसको पाया !

पल में उड़ी,
साथी संग वो आयी,
साथ में बैठी !

घोंसला बना,
अंडा देने वाली थी,
अन्दर घुसी !

कुछ देर में,
फिर से उड़ गई,
राह तकूँ मैं !

आयी वापस,
साथी को संग लिए,
चुपके से वो !

हफ्ते भर में,
दिए अंडे उसने,
नन्ही-सी जान !

छोटे-से बच्चे,
चूँचूँ-चूँचूँ करती,
मन को भाती !


Monday, November 7, 2011

एक नयी कहानी

ये कहानी, ये किस्से,
है ज़िन्दगी के ही हिस्से,

फिर भी हम इन्हें,
क्यूँ अपना नहीं पाते?


जितने ये पास आते,
उतने ही हम दूर जाते,
इन किस्सों से सपनों को सजाकर,
जीवन को क्यूँ नहीं सँवारते?


फिर आहट ह्रदय लेकर,
फिरते हैं इधर उधर,
किस्से बन जाते हैं नये,
वैसे ही जैसे कुछ पुराने !

फिर भी सदियों से,
लोग किस्से बनाते रहे,
और कहानी उनकी हर युग में,
सबको सुनाते ही रहे !

मैं भी एक किस्सा हूँ,
क्यूँकि समय का हिस्सा हूँ,
होगी मेरी भी एक कहानी,
जो बनेगी अस्तित्व की निशानी !

फिर कैसे मैं सोचूँ,
एक दिन अचानक मिट जाऊँगी,
मैं इतिहास के पन्नों पर,
अंकित हो जाऊँगी !


Monday, October 31, 2011

बेसहारा औरत

एक औरत,
मासूमियत भरी,
देखती रही !

आँखें नम-सी,
भूख से तड़पती,
पैसे माँगती !

दिल ने कहा,
बेबसी देखकर,
करूँ मदद !

पूछा उससे,
क्यूँ माँग रही भीख,
कुछ बोली !

सिर हिलाए,
समझाना चाहती,
वो तो गूँगी थी !

तरस आया,
बेचारी असहाय,
वो थी अकेली !

उसे बुलाया,
संग घर ले आयी,
पनाह दे दी !

खुश हो गई,
काम करना सीखा,
मिली ज़िन्दगी !

Sunday, October 23, 2011

दिवाली आयी

दीपों की पंक्ति में हँसती,
दिवाली की रात है आयी !

सब लोगों ने मिल-जुल कर,
घर-आँगन की करी सफाई !


रंग बिखेर रही फुलझड़ियाँ,
राकेट और पटाखे लड़ियाँ !

खिलखिलाते हुए अनार,
इन्द्रधनुष सा छाया है बहार !


घर आँगन दीपों की माला,
फैला चारों ओर उजाला !


बम फटे और चले पटाखे,
रोशनी से मूंद-मूंद गयी आँखें !

खुशियाँ बाँटो बारम्बार,
ये संदेश देती है त्यौहार !


सबको मिले प्रभु का प्यार,
जीवन में सुख अपरम्पार !


दीप जले हैं देखो झिलमिल,
सबने ख़ुशी मनाई हिलमिल !


घर-घर में छायी खुशहाली,
मुस्काती आयी दिवाली !


Wednesday, October 19, 2011

बारिश की फुहार

रोए पर्वत,
चूम कर मनाने,
झुके बादल !

कुछ जज़्बात,
काले बादलों जैसे,
छाए मन में !

हल्की फुहार,
रिमझिम के गीत,
रुके न झड़ी !

एक भावना,
उभर कर आई,
बरस गई !

बादल संग,
आँख मिचौली खेले,
पागल धूप !

करे बेताब,
ये भयंकर गर्मी,
होगी बारिश !

झुका के सर,
चुपचाप नहाए,
शर्मीले पेड़ !

गीली आँखें,
कर गई मन को,
हल्का हवा-सा !

ओढ़ चादर,
धरती आसमान,
फुट के रोए !

मन मचला,
हुआ है प्रफुल्लित,
नया आभास !

Thursday, October 13, 2011

ग़ज़ल सम्राट

पृथ्वी है लाखों वर्ष पुरानी,
जीवन है एक अनंत कहानी,
जन्म-मरण का ये अविरल फेरा,
जीवन बंजारों का है डेरा !

जीवन का ये दस्तूर, आज यहाँ कल कहाँ,
प्रतिदिन जीवन में आता है परिवर्तन,
जीवन की ढलने जाती है सांझ,
तब उमर भी नहीं देती है साथ !

जगजीत सिंह जी को कोई भूल पायेगा,
उनके जैसा सुर-साधक कोई दूजा आयेगा,
विश्वभर में विख्यात था जिनका अंदाज़,
गूँज रही है अब भी उनकी मधुर आवाज़ !

दुनिया को छोड़ गए करके शुन्यता,
हर चेहरे पे छा गई है उदासीनता,
ग़ज़ल सम्राट के नाम से थे मशहूर,
उनको मेरा
श्रद्धा-नमन है भरपूर !

Sunday, October 9, 2011

दर्द

रूठी तन्हाई,
दर्द की बाहें घिरी,
ढूँढें मंज़िल !


मूक ज़िन्दगी,
सब सहे ज़िन्दगी,
फिर भी चले !

अचंभित हूँ,
धडकनें जो मिली,
रूकती नहीं !

आँखें छलके,
बहे तपते आँसू,
फिर भी जागे ?

बिना सहारे,
तेरी आस में जिए,
यही है जीना ?

सहन नहीं,
यूँ घुटकर जीना,
ज़हर पीना ?

Sunday, October 2, 2011

गाँधी जयंती

राष्ट्रपिता तुम कहलाते हो,
सभी प्यार से कहते बापू !

तुमने हम सबको मार्ग दिखाया,
सत्य अहिंसा का पाठ पढ़ाया !

हम सब तेरी संतानें हैं,
तुम हो हमारे प्यारे बापू !

सीधा-सादा वेश तुम्हारा,
नहीं कोई अभिमान !

खादी की एक धोती पहने,
वाह रे बापू तेरी शान !

एक लाठी के दम पर तुमने,
अंग्रेजों की जड़ें हिलाई !

भारत माँ को आज़ाद कराया,
रखी देश की शान !

आज तुम्हारे जन्मदिवस पर,
हम करते हैं शत शत नमन !


Friday, September 23, 2011

ख़ाक होने से पहले

रूठे हो मुझसे, बात भले करना तुम,
सिर्फ़ एक बार सीने से लगालो तुम !


ख़ाक होने से पहले जो पुकारूँ नाम,
सुनके मुझे पास में बुलालो तुम !

वक्त की धारा में बिछड़े हैं हम दोनों,
बनके कश्ती किनारे पे लगालो तुम !

तन्हाई का शिकार हूँ मैं, जानते हो तुम,
तन्हा करो और मुझे संभालो तुम !

दूर रहकर भी तुम अपने-से लगते हो,
पास आकर अजनबी बनालो तुम !

सहारा नहीं माँगा है तुमसे मगर,
मझधार से अब तो निकालो तुम !


Friday, September 2, 2011

ख़्वाबों में मत तराश

उदास रात की कोई सुबह हसीन नहीं होती,
ख़ुशी के एक लम्हें के लिए तरस जाती !

आसमाँ है मेरा, ज़मीन ही है मेरी,
जिसे माना अपना, बेगाना-सा लगे वहीँ !

मैं ख़ुशबू बनकर हवा में नहीं बसती,
मैं किरणों की तरह महीन भी नहीं !

मुझे तू ख़्वाबों में मत तराश अभी,
उड़ती तितली की तरह मैं रंगीन नहीं !

छुप जाते हैं बादल में कभी चाँद तारे,
गुमसुम रहकर देखती हूँ वो सब नज़ारे !

भुला दिया उसने प्यार करके मुझे,
मिलने पर वो पहचाने, मुझे ये यकीन नहीं !

टूटे हुए कांच की तरह बिखर गई मैं तो,
मिले अब पनाह तक, ये सोचकर रोयी !

बुझ गया ये "दीप", सुबह के सितारे के लिए,
खुश हूँ मिटकर भी, मैं ज़रा गमगीन नहीं !

Sunday, August 28, 2011

दरिया

सागर से बिछड़ा दरिया हूँ मैं,
क़ाश कहीं पर फिर मिल जाऊँ,
बादल ने चुराया जिसका पानी,
उस धरा को आज भिगो जाऊँ !

कैसे रहूँ बिन सागर के मैं,
अधूरा सा रहने लगा हूँ उसके बिन,
सागर से संगम कब होगा?
ये आस लिए मैं बिखरी धरा पर !

लाया था कुछ, ले जाऊँ,
समंदर में फिर समा जाऊँ,
इस मोह से बंधन टूटा पर,
इस माया से कैसे मुक्ति पाऊँ?

कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !

Monday, August 22, 2011

कान्हा का जन्मदिवस

माखन खाए, शोर मचाये,
गोपियों के संग रास रचाए,
मुरली बजाके मन बहलाए,
है वो नटखट नंदगोपाल !

गोकुल में करे जो निवास,
सबके मन में है कान्हा का वास,
बारिश में झूमे सारी गोपियाँ,
कान्हा देखे गोपियों की मस्तियाँ !

माखन चुराकर जिसने खाया,
बंसी बजाकर जिसने नचाया,
ख़ुशी मनाओ उनके जन्म की,
जिसने दुनिया को प्रेम करना सिखाया !

बच्चे बूढ़े सभी झूमे मस्ती में,
सबके दिल में है ज़ोश उत्साह,
उमंग से भरा ये पल रहे हमेशा,
कान्हा का आशीर्वाद रहे सर्वदा !


Friday, August 19, 2011

याद उनकी

याद उनकी हमें पल-पल सताए क्यूँ?
खुश्क अँखियों में समंदर आए क्यूँ?

पानी को तरसते जिस वीराने में,
दर्द का सागर वहाँ पहुँच जाए क्यूँ?

तन्हा रात कटती नहीं बगैर तेरे,
ख़ुशी का इक लम्हा यूँ गुज़र जाए क्यूँ?

इन्कार का गिला ना किया जब हमनें,
मेरी आह पर इलज़ाम लगाए क्यूँ?

कहता है प्यार है बेपन्हा मुझसे,
हर मोड़ पर हमें यूँ आज़माए क्यूँ?

महसूस नहीं कर सके मेरे गम को,
आज मेरे दर्द पे मुस्कुराए क्यूँ?

हर इल्ज़ाम वो देता है इस दिल को,
फिर भी मासूम बना नज़र आए क्यूँ?


Monday, August 15, 2011

स्वतंत्रता दिवस

वतन हमारा ऐसे छोड़ पाए कोई,
रिश्ता हमारा ऐसे तोड़ पाए कोई,
जान लुटा देंगे, वतन पे हो जायेंगे कुर्बान,
सब मिलकर कहते हैं हमारा देश महान !

कई धर्मों का हमारा देश है,
फिर भी एक दूजे से प्यार है,
कितने लोग, है अलग-अलग भाषाएँ,
फिर भी सबकी एक जुबां है !

हम अपने देश का सम्मान करें,
शहीदों की शहादत याद करें,
सब हाथों पे हाथ रखकर कहें,
जो कुर्बान हुए, उनके लफ़्ज़ों को आगे बढ़ाएं !

मिलकर हम सब यतन करें,
हिन्दुस्तान हमारा खुशहाल रहे,
अपने ध्वज की जो मर्यादा करें,
वही भारत का सच्चा नागरिक कहलाये !

मुश्किल नहीं कोई भी काम,
हम करते है तिरंगे को सलाम,
जब जब ये तिरंगा लहराएगा,
देशभक्ति के किरणों को फैलाएगा !

ये ध्वज हिस्दुस्तान की शान है,
इस देश के बलिदानों की जान है,
ये देश है हमारा, हम इसे बचाए,
आओ गर्व से स्वतंत्रता दिवस मनाये !

Thursday, August 11, 2011

शब्दों के अश्क

कलम ये जब-जब रोती है,
शब्दों में अश्क पिरोती है !

अश्कों में स्याही घुलकरके,
गीतों के दुःख में सोती है !

इक हाथ से ज़ख्म दिया करती,
दूजे से मरहम दे रोती है !

तेरी कमी में बिखरती हूँ,
तेरी यादें नयन भिगोती हैं !

रात बढ़ते ही सन्नाटा छाए,
तेरे बगैर अब कुछ भाए !

है पहचान हमारी बरसों की,
फिर भी लगे यूँ कि हो अजनबी !

अब कुछ लिखना चाहे,
ये कलम यूँ मुरझाना चाहे !

सिर्फ़ अश्क ही अपने साथ रहे,
तुझे पास बुलाकर दर्द कहें !


Thursday, August 4, 2011

मेरा शहर

मेरा
शहर जो रंग बदलता ही रहा,
कभी साथ मिल-जुलकर रहते थे वहाँ,
अब किसी के पास बात करने का वक़्त कहाँ !

मेरा शहर जो रंग बदलता ही रहा,
कभी बहारों का आशियाना था जहाँ,
अब पतझड़ के पेड़-सा लगता है सुना !

मेरा शहर जो रंग बदलता ही रहा,
वो वक़्त गया जब एक दूजे के लिए जीते,
आज वही लोग सब स्वार्थी बन गए !

मेरा शहर जो रंग बदलता ही रहा,
कभी दोस्त जो लगते थे अपने,
अब सारे लोग अजनबी-से लगने लगे !


मेरा शहर जो रंग बदलता ही रहा,
आसमाँ है वही, हवाओं में है खुशबू वही,
खो गया है वो प्यार, वे जज़्बात कहीं !

मेरा शहर जो रंग बदलता ही रहा,
कभी फूलों की तरह खिलता था बचपन यहीं,
अब बिखर गया है टूटे दर्पण-सा कहीं !


मेरा शहर जो रंग बदलता ही रहा,
ख्वाहिश है इसके ज़र्रों में ज़िन्दगी भरूँ,
आने वाले सुनहरे कल के साथ हर खुशियाँ समेटूँ !

मेरा शहर जो रंग बदलता ही रहा,
कभी खोया, कभी पाया, जैसे समंदर की लहर,
रह-रहकर अब सपनों में भी रुलाता मेरा शहर !