BLOGGER TEMPLATES AND TWITTER BACKGROUNDS

Monday, May 30, 2011


मंज़िल

निकल पड़े थे राह पर अकेले,
चला किए हम शाम सवेरे !

मंज़िल पर पहुँचने से पहले,
राह में ही हम अटक गए !

मंज़िल दूर तक नज़र नहीं आए,
लगा जैसे हम रास्ता भटक गए !

बेचैन होकर हमारी नज़र,
ढूंढ़ रही थी इधर उधर !

अचानक..हवा का झोंका आया,
मानो किसीने प्यार से सहलाया !

आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !

उन्होंने रखा मेरे सर पर हाथ,
ले गयी दादीमा मेरे सारे दुःख अपने साथ !

दूर हो गयी सारी परेशानी मेरी,
मंज़िल सामने नज़र आयी मेरी !


Thursday, May 26, 2011


पहली बार

ज़िन्दगी तुमसे हम क्या कहें,
तुमने कितने रंग मुझमें भर दिए,
अब ख़ामोशी गुनगुनाने लगे,
तन्हाई हँसके शर्माने लगे !


चल रहे हम ख़्वाबों को बाहों में लेके,
आँचल बन जाए आसमाँ ये सोचने लगे,
कुछ बने हम खुदमें ऐसे,
और दूजा यहाँ पे हो जैसे !


कोई आहट है, है कोई हमसफ़र,
किसे ढूँढूँ मैं, हूँ बेखबर,
कभी सोचूँ मोरनी बन जाऊँ बरसातों में,
नाचूँ मैं अब हर सरगम पे !

है कोई मंज़िल, है किसीका प्यार,
फिर भी ख़ुशबुओं से ज़िन्दगी लाती है बहार,
जाने दिल क्यूँ झूमे आज पहली बार,
हमको होने लगा है हमीसे प्यार !

Friday, May 20, 2011


समय

समय कब है ठहरा किसीके लिए?
ये रुकता नहीं आदमी के लिए !

समय की शिला पर कई चित्र आए,
किसीने बनाए किसीने मिटाए,
किसीने लिखी आँसुओं से कहानी,
कई आँख रोई भी, बरसा है पानी !

चुनौती है हर पारखी के लिए !

निशा ने सुलाया, उषा ने जगाया,
समय पर है हर काम करना सिखाया !
ये सुख-दुःख तो सिक्के के पहलू हैं दो,
दुआ करती हूँ हर हाल में सब खुश रहो !

सदा पाठ शिक्षक ने हमको पढ़ाया,
बड़ा मुर्ख जिसने समय को गँवाया !
यहाँ जिसने कीमत समय की है समझी,
समय ने भी उसकी सदा लाज राखी !

समय को संवारो सदा के लिए !

Sunday, May 15, 2011


मोहब्बत

हर ग़ज़ल में लिखती हूँ मैं तुझको,
और मेरा पैग़ाम--मोहब्बत क्या होगा ?

तेरे ख्यालों में खोयी रहती हूँ सदा,
इससे बड़ा सलाम--मोहब्बत क्या होगा ?

इकरार कर लिया हमने मोहब्बत का,
जाने अब अंजाम--मोहब्बत क्या होगा ?

निकल परे संग तेरे हम सुबह को,
कौन जाने शाम--मोहब्बत क्या होगा ?

दुनियावाले क्या कहें और क्या सोचें,
जाने अब अपना नाम--मोहब्बत क्या होगा ?

लम्बा है ये सफ़र, आसान नहीं है डगर,
कौन जाने मुक़ाम--मोहब्बत क्या होगा ?


Sunday, May 8, 2011


मातृ दिवस

आज बैठे बैठे मेरी आँखें भर आयी,
माँ की याद दिल को छूने चली आयी,
रोने पर माँ भागकर मुझे गोद में उठाती,
अपने आँचल से मेरा मुँह पोछती !

रोज़ सुबह मुझे जगाती, सीख सिखाती,
रात को मीठी मीठी लोरी गाती,
मैं अपने दुःख-दर्द सुनाती माँ को,
माँ से बढ़कर अच्छी सहेली मिली मुझको !

सारे कष्ट माँ ख़ुद झेलती,
फिर भी कभी उन्हें थकावट नहीं आती,
माँ है एक ऐसी पाठशाला,
जिसमें हम जपते हैं प्रेम की माला !

माँ फूलों की गुलदस्ता है,
हर तरफ अपनी ख़ुशबू बिखेरती है,
माँ एक ऐसी उपन्यास है,
जिसका शीर्षक सिर्फ़ प्रेम है !

माँ के आंचल में है आशियाना हमारा,
माँ देती है सदा शीतल छाया,
माँ इंसान के रूप में है भगवान,
मातृ
दिवस पर माँ तुम्हें सादर प्रणाम !

Wednesday, May 4, 2011


नदी

सुन्दर वादियों में निकल पड़े हम,
पर्वत से बहती नदियाँ देखने लगे हम,
क्या गज़ब दृश्य है,जैसे एक सपना है,
पशु, पक्षियाँ, पेड़ सब जैसे अपना है !

कुहू कुहू मीठे आवाज़ में पुकारती पंछी,
छल छल आवाज़ करती, मीठे राग सुनाती नदी,
बारीश के मौसम में होगा क्या नज़ारा,
इन वादियों में खोने को दिल करता है हमारा !

लहराके बलखाके बहती रहती है नदी,
पलभर के लिए लगे, बस जाये हम यँही,
तटपर बिखरती है सौंदर्य अपनी नदी,
देखकर मन खिल उठे हर घड़ी !

चाहे कितने ही युग क्यूँ बीते,
हज़ार बाधाएँ नदी क्यूँ सहे,
छोड़ेगी नहीं कभी अपने पथ को,
भावनाओं की तरह बहती रहेगी नदी !