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Tuesday, November 23, 2010


अधूरी सी बात

कुछ कहना तो चाह रहे हैं,
पर कह नहीं पा रहे हैं,
न जाने क्यूँ लव्ज़ जुबां पे आकर,
यूँ ठहर जा रहे हैं !

ख्याल भी मुझसे दूर जाकर,
जाने किस ओर जा रहा है,
अंजाम न पाकर,
लौट कर आ रहा है !

कोई गूँज किसी ओर से,
इधर आ रही है,
मेरी ख़ामोशी से टकराकर,
बिखर जा रही है !

क्या पागल है ये मन ?
इस तरह बहका जा रहा है,
रो रही है आँखें,
और ये हँसना चाह रहा है !

कोई ख़ुशबू तो है यहाँ,
जो माहौल को महका रही है,
अपने ही आहोश में,
मुझे डूबोए जा रही है !

मैं क्या सोच रही थी,
और कहाँ जा रही थी ?
हाँ, शायद किसी अधूरे से एहसास को,
पकड़ना चाह रही थी !

Saturday, November 6, 2010


दिवाली

मुस्कुराते हँसते दीप जलाये,
जीवन में नयी खुशियाँ लेकर आये,
दुःख दर्द भूलकर गले लगाये,
मिलजुलकर सब दिवाली मनाये !

सुख सम्पदा सबके जीवन में आये,
सुन्दर दीपों से आँगन जगमगाये,
चारों तरफ़ रोशनी ही रोशनी छाये,
पटाखों की बौछार से जग झिलमिलाये !

रंग बिखर रही फुलझरियां,
टीम टीम दीपों की लड़ियाँ,
दमक रही घर द्वारों पर,
दीपों का ये त्यौहार है अनूठा !

बम फटे और चले पटाखें,
रोशनी से मूंद मूंद गयी सबकी आँखें,
घर घर में छायी खुशहाली,
देखो मुस्काती आयी दिवाली !