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Friday, September 23, 2011

ख़ाक होने से पहले

रूठे हो मुझसे, बात भले करना तुम,
सिर्फ़ एक बार सीने से लगालो तुम !


ख़ाक होने से पहले जो पुकारूँ नाम,
सुनके मुझे पास में बुलालो तुम !

वक्त की धारा में बिछड़े हैं हम दोनों,
बनके कश्ती किनारे पे लगालो तुम !

तन्हाई का शिकार हूँ मैं, जानते हो तुम,
तन्हा करो और मुझे संभालो तुम !

दूर रहकर भी तुम अपने-से लगते हो,
पास आकर अजनबी बनालो तुम !

सहारा नहीं माँगा है तुमसे मगर,
मझधार से अब तो निकालो तुम !


28 comments:

शिवम् मिश्रा said...

'तन्हाई का शिकार हूँ मैं, जानते हो तुम,
तन्हा न करो और मुझे संभालो तुम !'


वाह बहुत खूब ... बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जज्बातों को खूबसूरती से लिखा है .

संजय भास्‍कर said...

बहुत ही सुंदर .....प्रभावित करती बेहतरीन पंक्तियाँ ....
बेहद खूबसूरत आपकी लेखनी का बेसब्री से इंतज़ार रहता है, यही तो है कलम का जादू बधाई
................बबली जी

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

दूर रहकर भी तुम अपने-से लगते हो,
पास आकर अजनबी न बनालो तुम !
jo apna sa lagta hai wo kabhi door kahan hai..behtarin

Dr Varsha Singh said...

बेहतरीन रचना....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

ख़ाक होने से पहले जो पुकारूँ नाम,
सुनके मुझे पास में बुला लो तुम !

लाजवाब....

Kunwar Kusumesh said...

कमाल कर दिया आपने,खूब.

Rakesh Kumar said...

वक्त की धारा में बिछड़े हैं हम दोनों,
बनके कश्ती किनारे पे लगालो तुम


बहुत खूब, बबली जी.
आप बहुत भावुक बना देतीं हैं.

सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.

संध्या शर्मा said...

खूबसूरत जज्बात....

जयकृष्ण राय तुषार said...

सुन्दर सी गज़ल बधाई और शुभकामनायें

वीरेंद्र सिंह said...

क्या ख़ूब लिखा है आपने ! बधाई!

SACCHAI said...

" वक्त की धारा में बिछड़े हैं हम दोनों,
बनके कश्ती किनारे पे लगालो तुम !

wah ! shandar rachana


http://eksacchai.blogspot.com

Neelkamal Vaishnaw said...

दूर रहकर भी तुम अपने-से लगते हो,
पास आकर अजनबी न बनालो तुम !
बहुत ही सुन्दर भावों से ओत-प्रोत है आपकी यह रचना बधाई हो आपको आप भी मेरे फेसबुक में आने का कष्ट करें
mitramadhur@groups.facebook.com

Maheshwari kaneri said...

सुन्दर सी प्यारी गज़ल.बहुत- बहुत बधाई और शुभकामनायें.......

Kailash Sharma said...

वक्त की धारा में बिछड़े हैं हम दोनों,
बनके कश्ती किनारे पे लगालो तुम !

...बहुत खूब ! भावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति..

Asha Joglekar said...

वक्त की धारा में बिछड़े हैं हम दोनों,
बनके कश्ती किनारे पे लगालो तुम !
वक्त की धारा अक्सर हमें अपनों से अलग कर देती है । ऐसे में दिल से पुकारना ही हमारे वश में रह जाता है ।
सुंदर रचना ।

Amrit said...

Very very good !!!!

Amrita Tanmay said...

गज़ल बेहद खूबसूरत है|शक्ति-स्वरूपा माँ आपमें स्वयं अवस्थित हों .शुभकामनाएं.

Patali-The-Village said...

बहुत सुन्दर भावों की सुन्दर अभिव्यक्ति|

ऋता शेखर 'मधु' said...

भावों की बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.. बधाइयाँ और शुभकामनाएं !

हास्य-व्यंग्य का रंग गोपाल तिवारी के संग said...

Bahut hin sundar Prastuti

Santosh Kumar said...

भावुक संवेदनाएँ.. अच्छी लगी. दुर्गा-पूजा की शुभकामनाएँ.

देवेन्द्र पाण्डेय said...

वाह! बहुत खूब।
यह ब्लॉग तो अब और भी सुंदर हो गया है! देर से आने का अफसोस है। यूं ही कभी कभार याद दिला दिया करें।

Dr.NISHA MAHARANA said...

वक्त की धारा में बिछड़े हैं हम दोनों,
बनके कश्ती किनारे पे लगालो तुम !
bhut acha.

M VERMA said...

आह्वान का सुन्दर स्वर ..

पूनम श्रीवास्तव said...

Bahut achchhii samvedanatmak kavita..Babli ji hardik badhai...
Poonam

मुकेश कुमार सिन्हा said...

'तन्हाई का शिकार हूँ मैं, जानते हो तुम,
तन्हा न करो और मुझे संभालो तुम !'

wah!! kya kahne hain!!...
pyari si rachna!1
aajkal aap hamare blog pe nahi aate!

yashoda Agrawal said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 03 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!