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Sunday, November 27, 2011

उन शहीदों को नमन

आज फिर बाँका सिपाही, जंग में इक मर गया,
जाते-जाते साँस अपनी, नाम माँ के कर गया !

झेल कर सीने पे अपने, दुश्मनों के वार को,
फूल बूढ़ी माँ की बगिया का यकायक झर गया !

जिंदगी कैसे कटेगी, माँ की बिन बेटे के अब,
प्रश्न आँखों की नमी का, मौन हर उत्तर गया !

उस सिपाही ने भी चाहा था कि घर आबाद हो,

अब तो उसकी माँ का जीना, हो बहुत दूभर गया !

फक्र करती माँ शहादत पर, तुम्हारी रात दिन,

कहते फिरती बेटा मेरा, करके ऊँचा सर गया
!

उन शहीदों को नमन जो घर की सीमा लाँघ कर,

हँसते-हँसते देश पर, कर जान न्यौछावर गया !


33 comments:

संतोष त्रिवेदी said...

शहीदों की याद को हमेशा सलाम !

vidya said...

फक्र करती माँ शहादत पर, तुम्हारी रात दिन,
कहते फिरती बेटा मेरा, करके ऊँचा सर गया !
....बहुत सुन्दर बबली जी....देशप्रेम के गीत सी लगी आपकी कविता.

केवल राम said...

फक्र करती माँ शहादत पर, तुम्हारी रात दिन,
कहते फिरती बेटा मेरा, करके ऊँचा सर गया !

बेहद प्रेरणादायी पंक्तियाँ

Deepak Shukla said...

Namaskar ji..

Veergati paakar ke koi, aaj tak hai na mara...
Apne sathi, sahcharon, parivar ke dil main raha..

Jo tirange main lipatkar..koi jo pahuncha hai ghar..
Patni, bete, maa, pita ke, garv se uth jayen sar...

Bahut hi sundar bhav...

Shubhkamnayen

Deepak Shukla..

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

२६/११/के सभी शहीदों को मेरा नमन....
अमर शहीदों की याद दिलाती सुंदर रचना,....
मेरे पोस्ट पर आने के लिए आभार..

ऋता शेखर 'मधु' said...

उन शहीदों को नमन जो घर की सीमा लाँघ कर,
हँसते-हँसते देश पर, कर जान न्यौछावर गया !
बहुत सुन्दर प्रस्तुति...

डॉ. मोनिका शर्मा said...

हृदयस्पर्शी..... शहीदों को नमन

Bharat Bhushan said...

देश के प्रहरियों पर बहुत कम कविताएँ लिखी जाती हैं. उर्मी जी आपको बहुत बधाई और वीरों को नमन.

सहज साहित्य said...

बहुत सुन्दर कविता है उर्मि जी आपने इस कविता में त्याग और बलिदान के अनोखे रंग भर दिए हैं । बहुत सधी हुई कविता है ।बधाई!!

vijai Rajbali Mathur said...

सैनिकों के सम्मान मे अभिव्यक्त उद्गार स्तुत्य एवं अनुकरणीय हैं।

G.N.SHAW said...

इस पवित्र सेनानी को नमन !
अति सुन्दर ! बधाई

Mamta Bajpai said...

देश प्रेम के नाम खूबसूरत रचना बधाई

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मन भर आया!!! नमन उन अमर शहीदों को!!

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

शहीदों को सलाम करती रचना

Amrit said...

As usual very very nice

देवेन्द्र पाण्डेय said...

बहुत सुंदर।
.देश प्रेम से ओत प्रोत यह गीत बड़ा प्यारा बन पड़ा है।..बधाई।

Rakesh Kumar said...

आपके सुन्दर प्रेरक जज्बातों को सलाम.
आपकी अनुपम कविता से हम आपके
पावन हृदय के भी दर्शन करते हैं,बबली जी.

बहुत बहुत आभार.

V Vivek said...

"फक्र करती माँ शहादत पर, तुम्हारी रात दिन,
कहते फिरती बेटा मेरा, करके ऊँचा सर गया!"
very nice line. bahut acchha likha hai aapne.

Kailash Sharma said...

जिंदगी कैसे कटेगी, माँ की बिन बेटे के अब,
प्रश्न आँखों की नमी का, मौन हर उत्तर गया !

....देशप्रेम के भावों से ओतप्रोत बहुत प्रभावी अभिव्यक्ति...

शिवम् मिश्रा said...

जय हिंद ... जय हिंद की सेना !

Amrita Tanmay said...

प्रभावी प्रस्तुति |

रविकर said...

बेहद प्रेरणादायी ||

बहुत सुन्दर बबली जी ||

Santosh Kumar said...

देशप्रेम पर आधारित रचनाएँ बहुत कम दिखती हैं,बहुत अच्छा लगा.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

देश के शहीदों को नमन!
बढ़िया रचना!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सुंदर भाव, बढ़िया शब्द चयन,

अमर शहीदों को समर्पित मार्मिक कविता.

कुमार संतोष said...

Bahut sunder rachna deshbhakti geet ragon mein josh bhar deta hai . Un sabhi sahido ko mera shat shat naman.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

फक्र करती माँ शहादत पर, तुम्हारी रात दिन,
कहते फिरती बेटा मेरा, करके ऊँचा सर गया !

उन शहीदों को नमन जो घर की सीमा लाँघ कर,
हँसते-हँसते देश पर, कर जान न्यौछावर गया !

koti-koti naman...

Maheshwari kaneri said...

हृदयस्पर्शी.सुन्दर भाव..... देश के शहीदों को मेरा नमन!

Kunwar Kusumesh said...

बहुत अच्छा लिखा है.शहीदों को नमन.

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

bahut dino baad itni bandhi hui behtarin ghazal padhne ko mili..tareef ke liye shabd nahi hain..mujhe to behad pasand aayee..

Suman Dubey said...

फक्र करती मां-------हमारा भी नमन इन शहीदो को।

Naveen Mani Tripathi said...

bahut sundar Urmi ji

sadar aabhar .

Shaheedon ke prti aapka samrpan vaki kabile tareef hai ....apki kavita ko naman hai.

ASHOK BIRLA said...

सुन्दर से भी सुन्दर
पता नहीं मैंने इस कविता को पढकर जिस अनुभूति का अनुभव किया है पर्याप्त है या नहीं ...होगा भी कैसे ....माँ की आँखों का इंतजार और गर्व से उठा हुआ सर ...और पुत्र की कर्तव्यनिष्ठा को समझना ...मुश्किल है !
उस सिपाही ने भी चाहा था कि घर आबाद हो,
अब तो उसकी माँ का जीना, हो बहुत दूभर गया !