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Sunday, December 4, 2011

प्रकृति का दृश्य

नीले
नभ में,
उड़े पंख फैलाये पंछी,
मन को भाये !

सिसकी
हवा,
उड़ चल रे पंछी,
नीड़ पराया !

आस
है मुझे,
पंछी जैसे मैं उडूं,
विश्व में घूमूँ !

धरा
की धूल,
छूने लगी आकाश,
हवा के साथ !

उड़ती
फिरूँ,
सारी दुनिया देखूँ,
मैं गीत गाऊँ !

कभी
मैं बैठूँ,
प्रकृति को निहारूँ,
ख़ुशी से झूमूँ !

ऊषा
ने बाँधी,
क्षितिज के हाथों में,
सूर्य की राखी !

अपूर्व
दृश्य,
तस्वीर बना डालूँ,
क्या करिश्मा !

रश्मि
की लाली,
सूरज को प्रणाम,
धरा के नाम !

धूप
सुबह,
ओस-सा झिलमिल,
इक सपना !

34 comments:

Neeraj Kumar said...

कितनी मनमोहक कविता है... और आपके अरमान भी बहुत अच्छे हैं... आमीन!!!

Nirantar said...

निरंतर दुआ
खुदा से करता हूँ
ख्वाइश मेरी पूरी
कर दे
प्रकृति को मेरी
बाहों में समेट दे
उसमें खो जाने दे

सुन्दर कविता उर्मीजी ,
आपकी कलम में जान है

दिगम्बर नासवा said...

वाह ... बहुत सुन्दर शब्दों से बुनी है आपने ये रचना ... लाजवाब ...

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

बहुत खूबसूरत रचना

Anju (Anu) Chaudhary said...

khubsurat shabd rachna...

संध्या शर्मा said...

बहुत सुन्दर शब्द रचना ...

Amrita Tanmay said...

बहुत सुन्दर कविता, अच्छी लगी .

रविकर said...

बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई ||

संतोष त्रिवेदी said...

शुभकामनाएं !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

मनमोहक चित्र खींचा है आपने!!

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया said...

मनमोहक सुंदर शब्दों के साथ
लिखी बेहतरीन पोस्ट!!!!!!!!

Kunwar Kusumesh said...

बहुत खूबसूरत.

Amrit said...

Very very nice

विभूति" said...

बहुत ही खुबसूरत और कोमल भावो की अभिवयक्ति......

virendra sharma said...

भाव प्रांजलता लिए सुन्दर कविता सुन्दर प्रतीक विधान .परिधान कविता का .

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

kaamnaon se bhari..ek accha sandesh deti ..prakriti ko chitrit karti ek sunder rachna...sadar badhayee aaur amantran ke sath

Rakesh Kumar said...

कभी मैं बैठूँ,
प्रकृति को निहारूँ,
ख़ुशी से झूमूँ !

आज कुछ कहने का मन नही है मेरा.
बस जय हो ,जय हो , जय हो
बबली जी के सुन्दर लेखन की जय हो.

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') said...

मोहक रचना...
सादर बधाई...

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

bahut hee khoobsurat babli jee!

vidya said...

nice poem...beautiful like a painting.

Bharat Bhushan said...

ये तो हाइकु हैं!! जो भी हो. प्रकृति के साथ एकाकार करती कविता, बहुत ही सुंदर.

Dr.NISHA MAHARANA said...

कभी मैं बैठूँ,
प्रकृति को निहारूँ,
ख़ुशी से झूमूँ !बहुत अच्छी प्रस्तुति।

संजय भास्‍कर said...

दिल को छू गयी ये पोस्ट.....बहुत सुंदर,

Rajeev Panchhi said...

बहुत अच्छी कविता! बधाई !

संगम Karmyogi said...

"ऊषा ने बाँधी,क्षितिज के हाथों में,सूर्य की राखी"
wah.....kavita padhte hue..aapki rachna me hui kalpana me khud main dub gaya tha..

ASHOK BIRLA said...

pata nahi kyu prakriti meri maa jaisi hai ....

jaise maa ke pass baithne ka man rah hi jata hai aur nikalna padta hai waise hi prakriti ki ranginiyon se jii nahi bharta

bahut hi sundar chitran !!

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) said...

सुंदर प्रस्तुति.

ऋता शेखर 'मधु' said...

सभी हाइकु बहुत ही सुन्दर...बधाई|

Satish Saxena said...

मेरा भी ....
मेरा भी यही मन है काश ...
शुभकामनायें आपको !

चला बिहारी ब्लॉगर बनने said...

प्रकृति को समर्पित एक बेहतरीन रचना..!

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

बहुत सुंदर
क्या कहने..

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

प्रकृति की अद्भुत छटा और सुन्दरता को समाहित किये सुन्दर रचना

Santosh Kumar said...

ऊषा ने बाँधी,
क्षितिज के हाथों में,
सूर्य की राखी !

सुन्दर रचना..आभार.

सहज साहित्य said...

सभी हाइकु बहुत खूबसूरत हैं उर्मि जी !