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Tuesday, June 14, 2011


नज़रंदाज़

एक नज़र भी वो अब तो इधर,
देखकर भी कभी उठाता नहीं है,
गलती से अगर मिल जाए नज़रें,
भूलकर भी वह मुस्कुराता नहीं है !

कुछ कहूँ मैं उससे अगर कभी,
वह है की गौर फ़रमाता नहीं है,
बढ़के रोक न लूँ मैं रास्ता उसका,
कभी ऐसे रास्तों से वो आता नहीं है !

उससे मिलने की लाख करूँ कोशिश,
पर वो कभी साथ निभाता नहीं है,
बैठा रहता है ख़ामोश बुत की तरह,
जुबां पे उसकी एक लफ्ज़ आता नहीं है !

आख़िर क्या हुई है ख़ता मुझसे,
कभी इतना भी बताता नहीं है,
क्यूँ नाराज़ रहने लगा है मुझसे ?
इसकी वजह कभी समझाता नहीं है !

अनजाने में शायद कुछ कह दिया होगा,
वह है की होठों पर कुछ लाता नहीं है,
बेचैन हो गयी हूँ मैं उसकी चुप्पी से,
मुझे इस बेचैनी से वह अब बचाता नहीं है !

उसने मुझे कभी समझा ही नहीं,
संग रहकर भी मुझे अपनाता नहीं है,
भूल हुई अगर तो कह दिया होता,
मेरा दर्द अब उसे तड़पाता नहीं है !

33 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

मन की पीड़ा को सार्थक शब्द दिए हैं

devendra gautam said...

भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

पीड़ा को भी गीत बनाकर शेयर करना कोई आपसे सीखे!
सुन्दर रचना!

संजय भास्‍कर said...

ह्र्दय की गहराई से निकली अनुभूति रूपी सशक्त रचना

सहज साहित्य said...

अनजाने में शायद कुछ कह दिया होगा,
वह है की होठों पर कुछ लाता नहीं है,
बेचैन हो गयी हूँ मैं उसकी चुप्पी से,
मुझे इस बेचैनी से वह अब बचाता नहीं है ! उर्मि जी यह वास्तविकता है कि प्यार करनेवाले की चुप्पी बहुत परेशान करती है । आपकी इस पूरी कविता में एक अव्यक्त बेचैनी झलकती है । व्यथा के इस चित्रण के लिए आपको बधई!

संध्या शर्मा said...

उसने मुझे कभी समझा ही नहीं,
संग रहकर भी मुझे अपनाता नहीं है,
भूल हुई अगर तो कह दिया होता,
मेरा दर्द अब उसे तड़पाता नहीं है !...

दिल के करीब से छूते हुए शब्द...
भावनाओ की सुन्दर अभिव्यक्ति...

Kailash Sharma said...

मन की व्यथा और भावनाओं का बहुत सुन्दर चित्रण..

Kunwar Kusumesh said...

मन की पीड़ा को सार्थक शब्द दिए हैं

सुन्दर रचना.

Sawai Singh Rajpurohit said...

अनजाने में शायद कुछ कह दिया होगा,
वह है की होठों पर कुछ लाता नहीं है,
बेचैन हो गयी हूँ मैं उसकी चुप्पी से,
मुझे इस बेचैनी से वह अब बचाता नहीं है !
सुंदर कोमल और संवेदनशील भाव बेहद खूबसूरत कविता

Maheshwari kaneri said...

मन की व्यथा का बहुत सुन्दर चित्रण..भावनाओं की सुंदर अभिव्यक्ति...धन्यवाद

डॉ. मोनिका शर्मा said...

आख़िर क्या हुई है ख़ता मुझसे,
कभी इतना भी बताता नहीं है,
क्यूँ नाराज़ रहने लगा है मुझसे ?
इसकी वजह कभी समझाता नहीं है !


Man ki peeda liye sunder abhiykti...

Dr Varsha Singh said...

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण कविता के लिए हार्दिक बधाई।

SACCHAI said...

भूल हुई अगर तो कह दिया होता,
मेरा दर्द अब उसे तड़पाता नहीं है !

sarthak alfajoan se saji ..sundar rachana ... man ki pida ko kagaj per sanjoya ..bahut hi badhiya rachana "

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’ said...

मन की पीड़ा की अच्छी अभिव्यक्ति
ज़रा इस लाइन पर भी ग़ौर फ़रमाएँ-
'अश्क़ पीने के लिए है कि बहाने के लिए'

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aapko to waise bhi nazarandaaz nahi kiya jaa saktaa!

Anamikaghatak said...

सुंदर अभिव्यक्ति

डॉ. दिलबागसिंह विर्क said...

आपकी पोस्ट आज के चर्चा मंच पर प्रस्तुत की गई है
कृपया पधारें
चर्चा मंच{16-6-2011}

दिगम्बर नासवा said...

Man ke bhaavon ko shabd de diye ....

Dr (Miss) Sharad Singh said...

उसने मुझे कभी समझा ही नहीं,
संग रहकर भी मुझे अपनाता नहीं है,
भूल हुई अगर तो कह दिया होता,
मेरा दर्द अब उसे तड़पाता नहीं है !


मन को गहरे तक छू लेने वाली
सुन्दर रचना...
सुन्दर अभिव्यक्ति ...

Jyoti Mishra said...

Emotions fantastically entwined in words...
Loved it.

G.N.SHAW said...

तपस्या करें शायद भगवान खुश हो जाएँ ! बहुत सुन्दर और द्विअर्थी कविता बधाई

रविकर said...

व्यथा के इस चित्रण के लिए
हार्दिक बधाई।|

Amrita Tanmay said...

Kuchh uddvelit karti hui rachana..shubhkaamana

CS Devendra K Sharma "Man without Brain" said...

एक नज़र भी वो अब तो इधर,
देखकर भी कभी उठाता नहीं है,
गलती से अगर मिल जाए नज़रें,
भूलकर भी वह मुस्कुराता नहीं है !

aisa kya ho gaya tha???? :):)

bahut dard bhari rachna...

behad khoobsoorat lagee,...

apni rachna ka sandarbh dena chahunga...

कल तक मेरे जाने के नाम से भी भरती थीं तुम सिसकियाँ
आज बड़ी बेदर्दी से कहती हो............
कौन हो तुम मेरे!


कल तक मेरी खुशबू , मेरी आहटों से पहचानती थीं तुम मुझको
अजनबी सी बनकर तुम आज कहती हो ........
कौन हो तुम मेरे!!!

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

aapka dard kisi aur ko tadpaaye na tadpaaye...humein to zarur tadpaata hai...aapki kalam to gazab hee dhaati hai har baar..!!

वीरेंद्र सिंह said...

Dard-e-dil ko vayan karta kavay man ko bahut achha lagaa! Iske liye apko badhaai!

Rakesh Kumar said...

यह पीड़ा यदि उस अन्तर्यामी परमात्मा के लिए है तो वह जरूर जरूर पिघलेगा.सांसारिक प्यार मायाजाल है.उस अंतर्यामी से प्यार मोक्ष से भी बढ़कर है.ऐसी पीड़ा का ही तो वह भूखा है.

Sapna Nigam ( mitanigoth.blogspot.com ) said...

उम्र की सहज संवेदनाओं को शब्दों में कुशलता से पिरोया है.

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत बढ़िया रचना!
सभी अन्तरे बहुत खूबसूरत हैं!

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

शानदार अभिव्यक्ति.. आभार

RameshGhildiyal"Dhad" said...

tere dukh ko kaun tatole is andhe saagar ke tal me?

jab man bhar jaata hai to dard chhalak sa jaata hai...
man ki peeda laakh chhupaaun dard
jhalak sa jaata hai...

tum dhara si udaar mana ho paas bullati...
vo door kahin chhip jaata hai...
tum hardam khushiyaan baanta karti
vo hardam gam de jaata hai...

Satish Saxena said...

बढ़िया मनुहार ! हार्दिक शुभकामनायें !!

sagar said...

bhaut badiya kavita..