मुलाकात लम्हा लम्हा याद आती है वो मुलाकात, रंगों से भरे ख़्वाब-सी एक शाम, थाम लिया था तुमने जो मेरा हाथ, देखा था हर नज़ारा हमनें एक साथ ! खाईं थी कसमें साथ निभाने की, जीवन के हर मोड़ पर साथ देने की, तुम्हारी बाहों में सुकून मिलता मुझको, तुमसे मिलकर ख़ुशनसीब समझी ख़ुदको ! कहाँ चले गए न जाने तुम उस पल के बाद, करती हूँ इश्वर से तुम्हारे लौटने की फ़रियाद, दिखाए थे तुमने प्यार-भरे मीठे सपने, क्षणभर में कर दिए वे बेगाने तुमने ! जुदाई के अँधेरे में मुझे छोड़ गए तुम, रहने लगी हूँ मैं सुबह से शाम गुमसुम, तन्हा देख रही हूँ आसमां में वो नज़ारे, चादर के जैसी फैली हुई जगमगाते तारे ! |
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Sunday, June 26, 2011
Posted by Urmi at 9:32 PM
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34 comments:
लम्हा लम्हा याद आती है वो मुलाकात,
रंगों से भरे ख़्वाब-सी एक शाम,
थाम लिया था तुमने जो मेरा हाथ,
देखा था हर नज़ारा हमनें एक साथ ....bahut hi khoobasoorat najm.
कहाँ चले गए न जाने तुम उस पल के बाद,
करती हूँ इश्वर से तुम्हारे लौटने की फ़रियाद,
दिखाए थे तुमने प्यार-भरे मीठे सपने,
क्षणभर में कर दिए वे बेगाने तुमने !
हाय! प्रीतम की निष्ठुरता कितनी दुखदाई होती है.
गोपियाँ भी कृष्ण के बिछुड़ने पर कितना रोती थी,तडफती थी,कलपती थी. यह सूरदास जी ने कितने सुन्दर ढंग से वर्णित किया है
अँखियाँ हरि दर्शन की प्यासी
देखत चाहत कमल नयन को,
निशदिन रहत उदासी
आपकी भावुक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
बहुत खूब...बेहतरीन लिखा है....
यही तड़प यही जज्बा उधर भी है |
तुम्हारे तड़प की उसे खबर भी है |
उसे भी याद आतें है रूमानियत के पल
लौटकर आएगा वो जिधर भी है ||
जुदाई के अँधेरे में मुझे छोड़ गए तुम,
रहने लगी हूँ मैं सुबह से शाम गुमसुम,
तन्हा देख रही हूँ आसमां में वो नज़ारे,
चादर के जैसी फैली हुई जगमगाते तारे !
जगमगाते तारों की खूबसूरत चादर और लम्हा लम्हा याद आती है वो मुलाकात.....आपकी इस प्यार भरी कविता की जितनी भी प्रशंसा की जाय कम है |आपको हार्दिक मेरी शुभकामनाएं .
Kitni sundar kavita , kitne sundar bhav.aabhar
आपकी भावुक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार
lovely poem
really beautiful as u
तन्हा देख रही हूँ आसमां में वो नज़ारे,
चादर के जैसी फैली हुई जगमगाते तारे !...
बहुत सुन्दर मर्मस्पर्शी प्रस्तुत..
दिखाए थे तुमने प्यार-भरे मीठे सपने,
क्षणभर में कर दिए वे बेगाने तुमने !
उलाहने में भी भोलापन...बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...
बेहतरीन.
सादर
sunder prastuti...
abhaar.
जी बहुत सुंदर रचना
कहाँ चले गए न जाने तुम उस पल के बाद,
करती हूँ इश्वर से तुम्हारे लौटने की फ़रियाद,
क्या बात
क्या बात है.
रूमानियत से लबरेज़ एक एक शब्द है.
विरह की बेचैनी को कहती अच्छी रचना
बहुत सुन्दर रचना!
आपने मुलाकातों को लेकर अच्छी रना पोस्ट की है!
लम्हा लम्हा याद आती है वो मुलाकात,
रंगों से भरे ख़्वाब-सी एक शाम,
थाम लिया था तुमने जो मेरा हाथ,
देखा था हर नज़ारा हमनें एक साथ ...
bahut khub!!
kya kahun..shabd kam hai...
लम्हा लम्हा याद आती है वो मुलाकात,
रंगों से भरे ख़्वाब-सी एक शाम,
थाम लिया था तुमने जो मेरा हाथ,
khoobsurat ehsaason se bhari nazm..
जुदाई के अँधेरे में मुझे छोड़ गए तुम,
रहने लगी हूँ मैं सुबह से शाम गुमसुम,
तन्हा देख रही हूँ आसमां में वो नज़ारे,
चादर के जैसी फैली हुई जगमगाते तारे !
Bahut Sunder.....
Very very good :)))
Simply Speaking "A" Simple Blogger
ग़मगीन कविता और अद्भुत यादे ! सुन्दर
good one.......i can say appealing............:)
regards
Naveen solanki
http://drnaveenkumarsolanki.blogspot.com/
हर पतझड़ के बाद वसंत , हर अमावस्या के बाद पूर्णिमा अवश्य aati है इसलिए विरह के बाद मिलन भी निश्चित समझें .
बहुत खूब...बेहतरीन लिखा है....
aap se mara aanuroth hai ke may aaacha aake hindhi lekhane ka link muje ccaheya ho sake to muje bataeyaga, take may be aur aacha lekh saku
वाह............
प्रेम रस में सराबोर रचना .....बहुत अच्छी लगी
लम्हा लम्हा याद आती है वो मुलाकात,
रंगों से भरे ख़्वाब-सी एक शाम,
थाम लिया था तुमने जो मेरा हाथ,
देखा था हर नज़ारा हमनें एक साथ
भावुक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
बेहतरीन.
सादर
बहुत सुन्दर रचना!
उलाहना देने का मासूम अंदाज बड़ा ही खूबसूरत लगा.सुंदर प्रस्तुति.
बहुत सुन्दर कविता.
बहुत सुन्दर रचना!... भावुक सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आज पूरे 36 घण्टे बाद ब्लॉग पर आना हुआ!
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आपकी रचना पढ़ी।
बहुत पसंद आई!
बहुत खूब ...सादर शुभकामनायें !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
गम न कर जो वे तेरे इस प्यार के न आभारी रहे
मोल हीरे का क्या जाने कांच के जो व्यापारी रहे।
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