दर्द रूठी तन्हाई, दर्द की बाहें घिरी, ढूँढें मंज़िल ! मूक ज़िन्दगी, सब सहे ज़िन्दगी, फिर भी चले ! अचंभित हूँ, धडकनें जो मिली, रूकती नहीं ! आँखें छलके, बहे तपते आँसू, फिर भी जागे ? बिना सहारे, तेरी आस में जिए, यही है जीना ? सहन नहीं, यूँ घुटकर जीना, ज़हर पीना ? |
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Sunday, October 9, 2011
Posted by Urmi at 6:26 PM
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25 comments:
बहुत सुन्दर सार्थक रचना| धन्यवाद||
beautifully written.
जहर से भी मारक..अतिसुन्दर.
i like your page :)
acchi rachna ..aaj andaj kuch badla hua hai jaisa ammoman hota hai..sadar badhayee aaur amantran ke sath
बहुत सुन्दर प्रस्तुति ||
बधाई स्वीकार करें ||
मूक ज़िन्दगी,
सब सहे ज़िन्दगी,
फिर भी चले !
यही है जिन्दगी. बहुत सुन्दर रचना ...
क्षणिकाओं के माध्यम से बहुत कुछ कह जाना. एक अनूठा प्रयास..... कम शब्दों मे अधिकाधिक कहना आपकी कविताओं की विशेषता है बबली जी.....
इस सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए आपका आभार !
बहुत सुन्दर..आपकी अन्य कविताओं से बिलकुल भिन्न!!
Very good as usual :)))
मूक ज़िन्दगी,
सब सहे ज़िन्दगी,
फिर भी चले !
...बहुत सुन्दर..
ATYANT MARMIK , GAJAB - SHANDAR ABHIVYAKTI.
nice
बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति ...अति सुन्दर ब्लाग...सादर !!!
बहुत सुन्दर भावपूर्ण ,सार्थक रचना.
आह! बहुत खूब बबली जी.
क्या इनको हाइकू भी कहते हैं.
बहुत नुकीले हैं.
सीधे दिल के आर पार हुए जाते हैं.
वाह बेहतरीन !!!!
भावों को सटीक प्रभावशाली अभिव्यक्ति दे पाने की आपकी दक्षता मंत्रमुग्ध कर लेती है...
कुछ दिनों से बाहर होने के कारण ब्लॉग पर नहीं आ सका
बिना सहारे,
तेरी आस में जिए,
यही है जीना ?
सहन नहीं,
यूँ घुटकर जीना,
ज़हर पीना ?
बहुत सुन्दर रचना ...
ek samanya vishay par uttkrasht prastuti.
bahut achchhe haiku......badhaai
दर्द की झलक दिखाई पडती है,सुंदर पोस्ट,बधाई ..
dard bhari dastan. very nice.
सुन्दर सृजन , प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारें.
समय- समय पर मिले आपके स्नेह, शुभकामनाओं तथा समर्थन का आभारी हूँ.
प्रकाश पर्व( दीपावली ) की आप तथा आप के परिजनों को मंगल कामनाएं.
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 03 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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