वादियाँ ऊँचे ऊँचे पहाड़ों से बहता पानी राग अलापता है, सावन का सरगम मन को उत्साह से भरता है, कभी मन करता है रुक जाऊँ और इनमें खो जाऊँ, कभी दिल करता है दौड़ पडूँ पहाड़ की उंचाई पर ! दिल करता है बड़े छोटे पेड़ों से बात करती ही रहूँ, इन ख़ूबसूरत वादियों का भरपूर आनंद लेती रहूँ, घने काले बादल फैले हुए हैं मानो चादर की तरह, जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ ! कभी मन चाहे भीग जाऊँ पूरी तरह बारिश में, कभी लगे इन खुली वादियों में झूमती रहूँ, सच में ये सावन आह्लादित करता है, गाँव की खुशबू एक अजीब सुकून देती है ! गोबर की भीनी सी महक हवा में जादू घोलती है, मानो किसी मेहबूब की यादें लेकर चली आ रही है, यूँ तो कभी मिलता नहीं आसमाँ अपनी ज़मीं से, क्यूँकि जीवन खिलता है इस कमी से ! |
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Saturday, September 18, 2010
Posted by Urmi at 6:42 AM
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31 comments:
"कभी दिल करता है दौड़ पडूँ पहाड़ की उंचाई पर"
सुन्दर अभिव्यक्ति!
@ जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ !
इसे पढकर गाने लगा मन
मन तो बच्चा है जी!
थोड़ा कच्चा है
पर सच्चा है जी!!
बहुत प्राकृतिक अभिव्यक्ति, प्रकृति की तरह।
यूँ तो कभी मिलता नहीं आसमाँ अपनी ज़मीं से,
क्यूँकि जीवन खिलता है इस कमी से !
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति
दिल करता है बड़े छोटे पेड़ों से बात करती ही रहूँ,
इन ख़ूबसूरत वादियों का भरपूर आनंद लेती रहूँ,
घने काले बादल फैले हुए हैं मानो चादर की तरह,
जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ !
बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ.....
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
एक साथ गगन, गाँव और गोबर के साथ प्रक्र्ति का मजा आ गया..
कभी मन चाहे भीग जाऊँ पूरी तरह बारिश में,
कभी लगे इन खुली वादियों में झूमती रहूँ,
अरमानों की उड़ान .. बहुत खूब
Bahut Manmohak
गोबर की भीनी सी महक हवा में जादू घोलती है,
दिक्कत तो तब होती है - मेरा पांचवी क्लास का बेटा ........ गाँव नहीं जाना चाहता - कहता है - पापा पोटी कि स्मेल आती है.
क्या कहेंगे GEN-X को
khubsurati se shabdo ko ukeraa hai aapne..........prayas achcha hai.badhai
वादियों का पूरा चित्र ही उतार दिया आपने शब्दों के माध्यम से .
प्रकृति का प्रेम आपकी इस कविता में छलका पड रहा है । सुंदर अभिव्यक्ति ।
ये बात हुई...आनन्द आया पढ़कर.
यूँ तो कभी मिलता नहीं आसमाँ अपनी ज़मीं से,
क्यूँकि जीवन खिलता है इस कमी से !
अच्छी कविता ..!
प्रक्रति से रूमानियत भरा रिश्ता
बहुत सुंदर...अपनी अनूभूतियों को आपने सुंदर और सरल शब्दों में बांधा हैं.
प्रकृति का प्रेम आपकी इस कविता में छलका पड रहा है । सुंदर अभिव्यक्ति ।
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार
अपनी ज़मीन और अपनी जड़ों से जुड़ी एक सुंदर कविता. दूर देश में भी गाँव की धड़कनों का अहसास
कराती कविता. बहुत-बहुत बधाई .
bahut hi umdaah rachna....
badhai....
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मेरे ब्लॉग पर इस मौसम में भी पतझड़ ..
जरूर आएँ...
प्रकॄति से इतना प्यार एक सरल और कवि हदय ही कर सकता है। बहुत खूब अभिव्यक्त किया है आपने।
खूबसूरत पंक्तियां।
प्रकृति से स्वयं को जोड़ना ... बहुत अच्छी रचना ...
सरल शबदों में आपके भावों को उकेरती रचना ...
bahut sundar manbhavan prastuti badhai
As usual very nice. Reminded me of several songs from old movies describing natural beauty.
दिल करता है बड़े छोटे पेड़ों से बात करती ही रहूँ,
इन ख़ूबसूरत वादियों का भरपूर आनंद लेती रहूँ,
घने काले बादल फैले हुए हैं मानो चादर की तरह,
जी करे बादलों को पकड़कर दूर कहीं उड़ जाऊँ !
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बहुत ही बढ़िया रचना है!
पढ़कर मन प्रसन्न हो गया!
सुन्दर अभिव्यक्ति
सुंदर कविता ...
हर पंक्ति उम्दा है .
आभार
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति...
Nature is defined beautifully....Best wishes.
Hi Urmi
You are welcome to read a ghazal I've written today on'we even cry the same way' my regular blog.
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