मंज़िल निकल पड़े थे राह पर अकेले, चला किए हम शाम सवेरे ! मंज़िल पर पहुँचने से पहले, राह में ही हम अटक गए ! मंज़िल दूर तक नज़र नहीं आए, लगा जैसे हम रास्ता भटक गए ! बेचैन होकर हमारी नज़र, ढूंढ़ रही थी इधर उधर ! अचानक..हवा का झोंका आया, मानो किसीने प्यार से सहलाया ! आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी, दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही ! उन्होंने रखा मेरे सर पर हाथ, ले गयी दादीमा मेरे सारे दुःख अपने साथ ! दूर हो गयी सारी परेशानी मेरी, मंज़िल सामने नज़र आयी मेरी ! |
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Monday, May 30, 2011
Posted by Urmi at 8:31 PM
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26 comments:
दादी माँ का आशीर्वाद मिल गया तो मंजिल तो मिलेगी ही.
आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !
बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ....
ओह! दादी माँ से आपका इतना जुडाव.
वास्तव में तो दादी माँ के रूप में ईश्वरीय
प्रेरणा ही हमें प्रेरित करती रहती है मंजिल
की तरफ सैदेव अग्रसर होने के लिए.
सुन्दर प्रेरणादायक अभिव्यक्ति के लिए आभार.
बस यूँ ही आशीर्वाद मिलता रहे ..मंजिल खुद ब खुद मिल जायेगी
beautifully crafted !!
मंज़िल पर पहुँचने से पहले,
राह में ही हम अटक गए !
the reality of human life.
dadi maa prati aapka pyar dekhker aanand aa gaya ..bahut hi pyari rachana
कौवा बिरयानी सरकार ..जन लोकपाल बिल लोचे में पड़ा
http://eksacchai.blogspot.com/2011/05/blog-post_31.htm
बस यूँ ही आशीर्वाद मिलता रहे ..मंजिल खुद ब खुद मिल जायेगी
.....हर शब्द बहुत कुछ कहता हुआ, बेहतरीन अभिव्यक्ति के लिये बधाई के साथ शुभकामनायें ।
सुन्दर प्रेरणादायक अभिव्यक्ति है| इतनी खूबसूरत रचना की लिए धन्यवाद|
सुन्दर भावनात्मक कविता !
dadi ji ko samarpit yah kavita hamare sanskaron ko pradarshit karti hai .bahut achchhi bhavabhivyakti .aabhar
दादी माँ बहुत प्यारी होती है ! काश मै भी अपनी दादी माँ को देखा होता ! भावुक कविता
सुन्दर रचना....
बड़े बुजुर्गों का आशीर्वाद हमारी परेशानियों को सुलझाता रहता है , जिंदगी में सदैव अनजानी राहों पर उनका मार्गदर्शन जरूर मिलता है |
बेचैन होकर हमारी नज़र,
ढूंढ़ रही थी इधर उधर !..........
बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ.आभार.
kya khoobsurat baat kahee hai!!!
sundar kavita....
सुन्दर प्रेरणादायक अभिव्यक्ति
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
wah re aashish....dadi ke aashish ka chamatkar...:)
Wow. Excellent one once again.
nice one
dadima pr likhi pyari kavita
rachana
आपके सभी ब्लॉगज़ देख आए लेकिन सोचा इस मंज़िल पर रुकना चाहिए जहाँ बड़ों का आशीर्वाद मिल सकता है... शुभकामनाएँ
बना रहे बड़ों का साया.
आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !
उन्होंने रखा मेरे सर पर हाथ,
ले गयी दादीमा मेरे सारे दुःख अपने साथ !
दूर हो गयी सारी परेशानी मेरी,
मंज़िल सामने नज़र आयी मेरी !
मन को छूने वाली बहुत भावपूर्ण पंक्तियाँ....
कमाल के भाव लिए है रचना की पंक्तियाँ .......
बड़ों का आशीर्वाद ही साथ रहना चाहिए
मंज़िल दूर तक नज़र नहीं आए,
लगा जैसे हम रास्ता भटक गए !
बहुत सुंदर रचना है
आँख खुली तो देखा कोई परछाई सी,
दूर खड़ी मेरी दादीमा मुस्कुरा रही !
sundar ahsaas liye rachna
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