पहली बार ज़िन्दगी तुमसे हम क्या कहें, तुमने कितने रंग मुझमें भर दिए, अब ख़ामोशी गुनगुनाने लगे, तन्हाई हँसके शर्माने लगे ! चल रहे हम ख़्वाबों को बाहों में लेके, आँचल बन जाए आसमाँ ये सोचने लगे, कुछ बने हम खुदमें ऐसे, और न दूजा यहाँ पे हो जैसे ! न कोई आहट है, न है कोई हमसफ़र, किसे ढूँढूँ मैं, हूँ बेखबर, कभी सोचूँ मोरनी बन जाऊँ बरसातों में, नाचूँ मैं अब हर सरगम पे ! न है कोई मंज़िल, न है किसीका प्यार, फिर भी ख़ुशबुओं से ज़िन्दगी लाती है बहार, न जाने दिल क्यूँ झूमे आज पहली बार, हमको होने लगा है हमीसे प्यार ! |
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Thursday, May 26, 2011
Posted by Urmi at 2:16 AM
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28 comments:
चिंतनपरक सुन्दर और सार्थक कविता.वाह क्या बात है उर्मी जी.
न है कोई मंज़िल, न है किसीका प्यार,
फिर भी ख़ुशबुओं से ज़िन्दगी लाती है बहार,
न जाने दिल क्यूँ झूमे आज पहली बार,
हमको होने लगा है हमीसे प्यार !
ये पंक्तियाँ बहुत अच्छी लगीं.
सादर
बहुत सुंदर....जीने के लिए खुद से प्यार जरूरी है...
चल रहे हम ख़्वाबों को बाहों में लेके,
आँचल बन जाए आसमाँ ये सोचने लगे,.............
जी हाँ ! ख्वाबो को हकीकत में बदलने हेतु जरुरी है की हम पहले स्वयं का महत्व को जाने और स्वयं से प्यार करना सीखें,
भावमयी प्रस्तुति हेतु आभार.....................
आपका खुद से खुद को प्यार करना ही भा गया है बबली जी.अबकी बार तो आपने भावों की बहुत ऊँची उडान भर ली है.बिलकुल आत्म मगन लग रहीं हैं.
'चल रहे हम ख़्वाबों को बाहों में लेके,
आँचल बन जाए आसमाँ ये सोचने लगे,
कुछ बने हम खुदमें ऐसे,
और न दूजा यहाँ पे हो जैसे' !
सुन्दर प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.
आपका इस लिए भी आभार कि आपने 'राम मंदिर' के बारे में मेरे ब्लॉग पर अपने सुविचार प्रकट किये.
sundar ati sundar
pahli 4 lines ne hi sama bandh dia tha
ज़िन्दगी तुमसे हम क्या कहें,
तुमने कितने रंग मुझमें भर दिए,
अब ख़ामोशी गुनगुनाने लगे,
तन्हाई हँसके शर्माने लगे !
bahut achche manobhaavon ki prastuti.apne se pyar karne vaale hi doosron ko pyar kar sakte hain.bahut badhiya.
बहुत सुन्दर..ज्यादे की सोंच ही मुश्किलों के कारण है !
Awesome. Always like your poems Babli
न जाने दिल क्यूँ झूमे आज पहली बार,
हमको होने लगा है हमीसे प्यार !
बहुत सुंदर.... खुद से प्यार बहुत जरूरी है ...सार्थक रचना....
न है कोई मंज़िल, न है किसी का प्यार,
फिर भी ख़ुशबुओं से ज़िन्दगी लाती है बहार,
न जाने दिल क्यूँ झूमे आज पहली बार,
हमको होने लगा है हमी से प्यार !
-उर्मि जी आपने नए अन्दाज़ में प्यार को अभिव्यक्त किया है ।जब सब मुँह मोड़ लेते हैं , तब खुद से प्यार हो जाना एक सच्चाई है। बहुत उम्दा बात कही आपने । हार्दिक बधाई आपको ।
न कोई आहट है, न है कोई हमसफ़र,
किसे ढूँढूँ मैं, हूँ बेखबर,
कभी सोचूँ मोरनी बन जाऊँ बरसातों में,
नाचूँ मैं अब हर सरगम पे !
अद्भुत सुन्दर रचना! आपकी लेखनी की जितनी भी तारीफ़ की जाए कम है!
बहुत सुंदर भाव युक्त कविता
वाह उर्मी जी बहुत खूब ... आजकल फुल फॉर्म में है आप ...
ज़िन्दगी तुमसे हम क्या कहें,
तुमने कितने रंग मुझमें भर दिए,
अब ख़ामोशी गुनगुनाने लगे,
तन्हाई हँसके शर्माने लगे !
बहुत ही बढिया ... बादी प्यारी पन्क्तियाँ हैं....
क्या बात है बबली जी छ गए आप तो!
बहुत सुन्दर प्रणयगीत!
ऐसे ही लिखतीं रहें!
bahut sunder abhivykti.
badee pyaree rachana hai.
बहुत अच्छी प्रस्तुति
न है कोई मंज़िल, न है किसीका प्यार,
फिर भी ख़ुशबुओं से ज़िन्दगी लाती है बहार,
....बहुत सार्थक सोच..बहुत सुन्दर रचना..
आत्म मंथन से ही आत्मा मुग्ध होती है
कभी सोचूँ मोरनी बन जाऊँ बरसातों में,
नाचूँ मैं अब हर सरगम पे !
बहुत सुन्दर...बेहद भावपूर्ण पंक्तियां...
उर्मी जी, बहुत ही प्यारी कविता है। बधाई।
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मौलवी और पंडित घुमाते रहे...
सीधे सच्चे लोग सदा दिल में उतर जाते हैं।
जिस दिन खुद से ,मोहब्बत हो गई
समझो कि जिंदगी जन्नत हो गई.
आदमी के साथ सबसे बड़ी दिक्कत यही है कि खुद को पहचानने की बजाय दूसरों को पहचानने में जिंदगी बीता देता है.जिस दिन खुद को पहचान लेता है ,हकीकत में जिंदगी वहीँ सेशुरू होती है.अच्छी कविता.
बहुत सुंदर कविता,
सादर- विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
babli ji
WAH ------ aaj to aapki kavita padhakar dil bag-bag ho gaya.kya baat hai -- itne sundar moti se shabdo ko chun chun kar aapni aoni kavita k arup hi behad shalinta ke sath nikhar kar rakh diya hai
bahut hi pyari si post
न है कोई मंज़िल, न है किसीका प्यार,
फिर भी ख़ुशबुओं से ज़िन्दगी लाती है बहार,
न जाने दिल क्यूँ झूमे आज पहली बार,
हमको होने लगा है हमीसे प्यार !
behtreen
poonam
खुद से प्यार बहुत जरूरी है|सुंदर, सार्थक रचना|
मेरे ब्लॉग पर अपने सुविचार प्रकट किये.
http://shayaridays.blogspot.com
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