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Thursday, July 28, 2011

सपनों की गलियों में

तुम्हारी आवाज़ सुनकर लगा ऐसे,
लम्बे-अँधेरे सफ़र में दूर कहीं,
दिख गया हो कोई दीपक जैसे !

एक मुलाकात से महसूस होता है ऐसे,
मेरे ही सपनों की गलियों में कहीं,
कोई मंज़िल की राह दिखा गया हो जैसे !

कभी कोई ख्याल आता है तुम्हारा,
मेरे दिल को छू जाता है ऐसे,
तुमसे मिलने की आस जगी हो जैसे !

दूर रहकर भी पास रहती हूँ मैं ऐसे,
मेरी उम्मीदों के क्षितिज पर कहीं,
मिल गए हों ज़मीं और आसमां जैसे !

सोचती हूँ मैं हर लम्हा हर पल ये ही,
"तुम ख़ुद कोई ख़्वाब तो नहीं हो मेरा?"
ये दिल मुझसे, मैं दिल से अक्सर कहती हूँ !

Friday, July 22, 2011


बम ब्लास्ट

बम ब्लास्ट की आवाज़ जब मुंबई में बरसी,
तब हर जान ख़ुद को बचाने को तरसी,
पलक झपकते ही हो गई तबाही,
मौत के घाट उतार दिए गए सभी !


कुछ इलाके के लोग बेखबर थे,
हमले के स्थल पर लोग शोक मना रहे थे,
जाने कितने मासूम लोगों की जानें गईं,
परिवार में अपनों की अपूर्णता छा गई !

आख़िर क्यूँ हुआ पहले सा भयंकर हादसा?
है सबके मन में ये एक ही जिज्ञासा,
क़ाश कसब को फांसी मिल गई होती,
आतंकवादी को जीती जागती सीख मिलती !

दुःख होता है ऐसे हादसे होते हुए देखकर,
अपने देश को बर्बादी से बचाना है मिलकर,
इंसानियत ही सबसे बड़ा धर्म है,
इंसान की मदद करना सबसे बड़ा कर्म है !


Sunday, July 17, 2011


आसमान

इतने बड़े आसमान में से,
एक कोना ही हमें दे देते,
कोई नाम न हम तुम्हें देते,
तुम हमें कोई नाम नहीं देते !

कितने खेल खेल लेते हो,

कभी धूप कभी बारिश बनके,
छाँव में बैठ तुम्हें निहारूँ तो,
काश सुना पाती दर्द मन के !

कभी इशारे से जो मुझे कहते,

तुम्हें दिल का हाल सुनाती,
तुमसे कुछ पूछूँ तो भला कैसे,
जवाब तुमसे कुछ नहीं मैं पाती !

ढूँढ़ रही हूँ ख़ुशी मैं हर तरफ़,

न जाने कब कहाँ मिलेगी,
तुमसे ही उम्मीद मुझे बाकी,
तेरे आंगन मेरी बगिया खिलेगी !


Tuesday, July 12, 2011


जी करता है

आके बैठो मेरे सिरहाने तुम,
और न सोचो कुछ बहाने तुम !

छूके देखूँ तो मानूँ मैं,
सच हो या ख़्वाब हो न जाने तुम !

आज भी हूँ मैं फ़िदा तुम पर,
क्या अब भी हो मेरे दीवाने तुम?

मेरी नज़रों में डालकर नज़रें,
ख़ुद ही पढ़लो सारे फ़साने तुम !

जी करता है रूठ जाऊँ मैं,
हँसके आ जाओ मनाने तुम !

मेरे सीने पे सर रखकर अपना,
यूँ न रहो बनकर बेगाने तुम !

Sunday, July 3, 2011


चेहरा

चिंता और प्यार का संगम देखा,
झुर्रियों की तह के पीछे,
डबडबाती हुई आँखों में अजीब सी चमक,
और चेहरे पे एक खोखली सी हँसी देखी !

अपने हाथों की लकीरों को देखती हुई आँखें,
जैसे अब भी कुछ होने का इंतज़ार है,
फिर देखती हुई पल्लू में पड़ी एक गाँठ को,
जैसे जीवन भर की दास्तान उसमें समाई हो !

कुछ बीती और बिखरी यादों की पनाह में,
लगा जैसे उनकी एक ज़िन्दगी चल रही है,
वर्त्तमान के खांचे में नज़र आए,
जैसे अतीत की खिड़की खुल रही है !

कुछ सोचते हुए आँखें भर आईं उनकी,
आँखों में अब भी दर्द झलकता है,
और चेहरे पे उभर आयी है...
एक जानी पहचानी सी मुस्कान !