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Thursday, July 28, 2011

सपनों की गलियों में

तुम्हारी आवाज़ सुनकर लगा ऐसे,
लम्बे-अँधेरे सफ़र में दूर कहीं,
दिख गया हो कोई दीपक जैसे !

एक मुलाकात से महसूस होता है ऐसे,
मेरे ही सपनों की गलियों में कहीं,
कोई मंज़िल की राह दिखा गया हो जैसे !

कभी कोई ख्याल आता है तुम्हारा,
मेरे दिल को छू जाता है ऐसे,
तुमसे मिलने की आस जगी हो जैसे !

दूर रहकर भी पास रहती हूँ मैं ऐसे,
मेरी उम्मीदों के क्षितिज पर कहीं,
मिल गए हों ज़मीं और आसमां जैसे !

सोचती हूँ मैं हर लम्हा हर पल ये ही,
"तुम ख़ुद कोई ख़्वाब तो नहीं हो मेरा?"
ये दिल मुझसे, मैं दिल से अक्सर कहती हूँ !

36 comments:

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

सोचती हूँ मैं हर लम्हा हर पल ये ही,
"तुम ख़ुद कोई ख़्वाब तो नहीं हो मेरा?"
ये दिल मुझसे, मैं दिल से अक्सर कहती हूँ !

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
बस लिखती रहिए!
हम पढ़ते रहेंगे!

Neeraj Kumar said...

लम्बे-अँधेरे सफ़र में दूर कहीं,
दिख गया हो कोई दीपक जैसे !

मेरी उम्मीदों के क्षितिज पर कहीं,
मिल गए हों ज़मीं और आसमां जैसे !

वाह... और क्या...

vidhya said...

वाह... और क्या...
बहुत सुन्दर रचना लिखी है आपने!
आपको मेरी हार्दिक शुभकामनायें
आप का बलाँग मूझे पढ कर अच्छा लगा , मैं भी एक बलाँग खोली हू
लिकं हैhttp://sarapyar.blogspot.com/
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Arvind kumar said...

बहुत ही बेहतरीन लिखा है...

Kunwar Kusumesh said...

सुंदर अभिव्यक्ति .

Anonymous said...

"दूर रहकर भी पास रहती हूँ मैं ऐसे,
मेरी उम्मीदों के क्षितिज पर कहीं,
मिल गए हों ज़मीं और आसमां जैसे !"

शूरवीर रावत said...

प्रेम में यह सब होता ही है. गुरुदेव ने 'संध्या संगीत' में कितने सुन्दर शब्दों में अभिव्यक्त किया है ;
फूल फुटे, आमि आर देखिते ना पाइ.
पाखी गाहे, मोर काछे गाहे ना से आर.

Rakesh Kumar said...

दिल से निकली बातें दिल तक पहुंचतीं हैं.
आपकी भोली भाली प्यार भरी बातें
मधुरता और कोमलता का अहसास
करा जातीं हैं.

सुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत
आभार,बबली जी.

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " said...

ये दिल मुझसे,मैं दिल से अक्सर कहती हूँ !
............बहुत प्यारी रचना

S.N SHUKLA said...

सोचती हूँ मैं हर लम्हा हर पल ये ही,
"तुम ख़ुद कोई ख़्वाब तो नहीं हो मेरा?


मैं नहीं जानता इन पंक्तियों में अंतर्मन की पीड़ा है या भावनाएं , किन्तु रचना बहुत प्रभावपूर्ण है , बधाई

जयकृष्ण राय तुषार said...

उर्मि जी बहुत ही सुन्दर कविता बधाई और शुभकामनायें |

Amrita Tanmay said...

बहुत सुन्दर ,अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार |

arvind said...

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति

कविता रावत said...

दूर रहकर भी पास रहती हूँ मैं ऐसे,
मेरी उम्मीदों के क्षितिज पर कहीं,
मिल गए हों ज़मीं और आसमां जैसे !
...bahut badiya bimb ke saath sundar pyarbhara tarana..

सुरेन्द्र "मुल्हिद" said...

amazing

SAJAN.AAWARA said...

bahut hi khubsurat abhiwaykti....
jai hind jai bharat

Amrit said...

Very good.

(( सुन्दर रचना ))

गिरधारी खंकरियाल said...

जब दिशा मिल जाए तो उद्देश्य में सफलता अवश्य मिलती है

Dr (Miss) Sharad Singh said...

सोचती हूँ मैं हर लम्हा हर पल ये ही,
"तुम ख़ुद कोई ख़्वाब तो नहीं हो मेरा?"
ये दिल मुझसे, मैं दिल से अक्सर कहती हूँ !

बहुत कोमल...बहुत सुन्दर भाव....

G.N.SHAW said...

diil की bechaini है यह !सुन्दर

रचना दीक्षित said...

सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति .

Dr Varsha Singh said...

सोचती हूँ मैं हर लम्हा हर पल ये ही,
"तुम ख़ुद कोई ख़्वाब तो नहीं हो मेरा?"
ये दिल मुझसे, मैं दिल से अक्सर कहती हूँ !


आपने बहुत सुन्दर शब्दों में अपनी बात कही है। शुभकामनायें।

संजय भास्‍कर said...

हर शब्‍द बहुत कुछ कहता हुआ, खूबसूरत अभिव्यक्ति .......शुभकामनायें ।

संजय भास्‍कर said...

तारीफ के लिए हर शब्द छोटा है बबली जी - बेमिशाल प्रस्तुति - आभार.

Rachana said...

सोचती हूँ मैं हर लम्हा हर पल ये ही,
"तुम ख़ुद कोई ख़्वाब तो नहीं हो मेरा?"
ये दिल मुझसे, मैं दिल से अक्सर कहती हूँ !
sunder abhivyakti
badhai
rachana

prerna argal said...

तुम्हारी आवाज़ सुनकर लगा ऐसे,
लम्बे-अँधेरे सफ़र में दूर कहीं,
दिख गया हो कोई दीपक जैसे !
बहुत ही बेहतरीन रचना बब्लीजी /दिल को छु गई /मेरे ब्लॉग पर आने के लिए धन्यवाद /

महेन्द्र श्रीवास्तव said...

वाह. बहुत सुंदर
कभी कभी ही ऐसी रचनाएं पढने को मिलती हैं।
बधाई

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" said...

कभी कोई ख्याल आता है तुम्हारा,
मेरे दिल को छू जाता है ऐसे,
तुमसे मिलने की आस जगी हो जैसे !
aisa nahi ki sirf ye teen panktiyan ke mujhe bhayeen hain...puri ghazal hi raas aayi hai..badhayee

Maheshwari kaneri said...

मेरी उम्मीदों के क्षितिज पर कहीं,
मिल गए हों ज़मीं और आसमां जैसे !...बहुत भावपूर्ण रचना...आभार

Anonymous said...

khoobsoorat rachna..pyar bhari..

http://teri-galatfahmi.blogspot.com/

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' said...

अपने शहर को लेकर बहुत सुन्दर अभिव्य्कति दी है आपने!

Manish said...

बहुत ही खूबसूरत!!

संजय भास्‍कर said...

सुन्दर प्रस्तुति........बबली जी
भावमय करते शब्‍दों के साथ गजब का लेखन ...आभार ।

virendra sharma said...

...क्‍या भारतीयों तक पहुच सकेगी यह नई चेतना ?
Posted by veerubhai on Monday, August 8
Labels: -वीरेंद्र शर्मा(वीरुभाई), Bio Cremation, जैव शवदाह, पर्यावरण चेतना, बायो-क्रेमेशन /http://sb.samwaad.com/ ज़िन्दगी खाब है ,खाब में झूठ क्या और भला सच है क्या ?bahut achhi rachnaa ,bablee ji.mubaarak.

S.N SHUKLA said...

रक्षाबंधन एवं स्वाधीनता दिवस के पावन पर्वों की हार्दिक मंगल कामनाएं.