दरिया
सागर से बिछड़ा दरिया हूँ मैं, क़ाश कहीं पर फिर मिल जाऊँ, बादल ने चुराया जिसका पानी, उस धरा को आज भिगो जाऊँ ! कैसे रहूँ बिन सागर के मैं, अधूरा सा रहने लगा हूँ उसके बिन, सागर से संगम कब होगा? ये आस लिए मैं बिखरी धरा पर ! न लाया था कुछ, न ले जाऊँ, समंदर में फिर समा जाऊँ, इस मोह से बंधन टूटा पर, इस माया से कैसे मुक्ति पाऊँ? कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ, कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ, मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर, मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ ! |
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Sunday, August 28, 2011
Posted by Urmi at 7:02 PM
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35 comments:
बहुत सुंदर भाव मन के ...
बधाई....
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !
bilkul thik kaha aapne doosron ko khushi denge to khud bhi khush rahenge.
ati uttam
सुन्दर भाव
लाजवाब ...
कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !
in lines ne dil jeet liye waah !
बहुत-बहुत बधाई |
सुन्दर प्रस्तुति ||
बहुत सुन्दर प्रस्तुति
आज 29 - 08 - 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....
...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
जख्म के बदले खुशियाँ ..बहुत ही सुन्दर रचना..आपको शुभकामना.
कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !
श्रेष्ठ आकांक्षा...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना....
बहुत सुंदर भाव.
सुन्दर प्रस्तुति ||
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !
बहुत सुंदर भाव...
बहुत सुन्दर भावमयी प्रस्तुति।
Babli,
I have run out of adjectives for your poems. They are so beautiful and well written. And of course with deep meaning for example last sentence of this poem is so profound.
Again why don't you publish a book. You are not an ordinary blogger.
कमाल का लिखा है...
लाजवाब प्रस्तुति...सुन्दर भाव के साथ..बधाई
अपने आराध्य में समाहित होने की उत्कंठा को दर्शाती एक भावमय प्रस्तुति. सुन्दर. परम सुन्दर. आभार.
वाह! बबली जी वाह!
विचित्र दरिया है आपका.
जख्म खाकर भी
हमें तो हमेशा ही आप खुशियाँ ही देती जातीं हैं.
सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
आपकी कवितायेँ अवं संग्रह पढ़ कर अच्छा लगा ऐसे रचनाओं के लिए धन्यवाद
कृपया मुझे भी मार्गदर्शन देवे
bahut sukomal,sunder man ke bhaav ukerti prastuti.
बहुत ही सुन्दर शब्द रचना
सुंदर कविता बधाई और शुभकामनाएं
बहुत सुंदर मनो भाव..
बधाई....
कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ ! उर्मी जी बहुत सुन्दर - प्रेरणा
priya babli jee aapki kavita padi,sundar bhavbhivaykti ke liye,badhai.
बबली जी
कैसे रहूँ बिन सागर के मैं,
अधूरा सा रहने लगा हूँ उसके बिन,
सागर से संगम कब होगा?
ये आस लिए मैं बिखरी धरा पर !
सुन्दर भाव
ईद मुबारक
Bahut sundar...
sundar, bhavpurn kavita...
aap khushiyaan hee detee hain!
सागर से बिछड़ा दरिया हूँ मैं,
क़ाश कहीं पर फिर मिल जाऊँ,
बादल ने चुराया जिसका पानी,
उस धरा को आज भिगो जाऊँ !
बेहद शानदार लाजवाब प्रस्तुति
sundar rachna
कुछ क़र्ज़ लिए थे दे जाऊँ,
कुछ अश्क मिले थे पी जाऊँ,
मैंने भी पाया ज़ख्म यहाँ पर,
मगर औरों को खुशियाँ दे जाऊँ !
बहुत सुंदर भाव...
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में रविवार 03 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
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